दैनिक मजदूरों की मांगें पूरी करने में कई पेच

बिहार |� नगर निगम के दैनिक सफाई मजदूरों की कई ऐसी मांगें हैं, जिन्हें पूरा करने में कई पेच हैं. इन कर्मियों की मांग बिहार सरकार ही पूरी कर सकती है. बिहार सरकार ने वर्ष 2018 में ही दैनिक सफाई मजदूर का पद समाप्त कर दिया है. साथ ही दैनिक कर्मी रखने का अधिकार भी ले लिया है. नये कर्मी आउटसोर्स से ही आ सकते हैं.
हड़ताल पर गए दैनिक कर्मियों का कहना है कि निगम से आउटसोर्स सेवा को समाप्त किया जाए. दैनिक मजदूरों की सेवा स्थायी की जाए. नगर निगम इन दोनों मांगों को अपने स्तर से पूरा नहीं कर सकता है. बिहार सरकार के आदेश के अनुसार समूह ग और घ के लिए नये पद का सृजन नगर निगम को करने का अधिकार नहीं है. नगर निगम के 2023-24 के बजट में स्थापना मद में 283 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान किया गया है. पिछली सशक्त स्थायी समिति की बैठक में दैनिक मजदूरों के वेतन में 30 रुपये की बढ़ोतरी की गई है. बढ़े हुए वेतन के बाद सिर्फ दैनिक मजदूरों के वेतन पर प्रत्येक वर्ष 74 करोड़ 12 लाख रुपये खर्च आएगा. मजदूरी में बढ़ोतरी होने से पहले प्रत्येक वर्ष 68 करोड़ 55 लाख रुपये खर्च करना पड़ता था. नगर निगम के पास इतना बजट ही नहीं है कि वह दैनिक कर्मियों की 25 हजार रुपये मासिक वेतन की मांग पूरी कर सके. दैनिक सफाई मजदूरों को वेतन राज्य सरकार के छठे वित्त से प्राप्त राशि से दिया जाता है. छठे वित्त की राशि समय पर नहीं आने से दैनिक कर्मियों को निगम मद से वेतन देना पड़ता है. ऐसे में निगम के दूसरे कार्य प्रभावित होते हैं. निगम को छठे वित्त से जो राशि मिलती है, उसमें 50 फीसदी सिर्फ वेतन आदि पर खर्च करना पड़ता है. इस बार छठे वित्त से करीब 198 करोड़ रुपये मिले हैं. ऐसे में दैनिक कर्मियों की मांग पूरी करने में कई पेंच हैं.


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