क्या है डाउन सिंड्रोम और इसके लक्षण

दुनिया भर में 21 मार्च को डाउनस सिंड्रोम डे (World Down Syndrome Day) मनाया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि ये डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) क्या होता है. ये किस तरह की बीमारी है और ये कब कैसे और किसे होता है. चलिए आपको इस बारे में पूरी जानकारी देते हैं. दरअसल, डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर होता है, जो बच्चों को जन्म से ही प्रभावित करता है. यही नहीं उन्हें पूरी जिंदगी किसी न किसी अक्षता से जूझना होता है.
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोग भले ही नॉर्मल लोगों की तरह दिखते हैं, लेकिन हर किसी की क्षमताएं अलग होती हैं. डाउन सिंड्रोम वाले लोगों का आईक्यू लेवल सामान्य और मीडियम लेवल से कम रेंज का होता है. इस सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में बोलने में धीमे होते हैं.
Down Syndrome के यूएस और भारत में कई केस
यूएसए में हर साल करीब 6000 बच्चे इस कंडीशन के साथ पैदा होते हैं. भारत में भी इसके हजारों केस सामने आते हैं. इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों का शारीरिक और मानिसक विकास धीमा होता है और इसकी वजह से उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
डाउन सिंड्रोम के लक्षण
डाउन सिंड्रोम के लक्षण शरीर के बनावट से पता चलती है. इसमें शरीर की बनावट कुछ अलग होती है. जैसे, चेहरे की फ्लैट बनावट, बादामी आखें, छोटी गर्दन, छोटे कान, कम हाइट, कमजोर मसल्स, बोलने में दिक्कत, छोटे-हाथ पैर, मुंह से बाहर निकली जीभ और याद करने में परेशानी.
डाउन सिंड्रोम का इलाज
डाउनस सिंड्रोम के इलाज की बात करें तो ये किसी भी ट्रीटमेंट से ये पूरी तरह खत्म नहीं हो सकता है. हालांकि, शुरुआत में इसका पता चल जाए तो डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को उनकी शारीरिक और बौद्धिक क्षमताओं में सुधार करने में मदद मिलती है. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को स्कूल में अतिरिक्त सहायता या ध्यान देने की भी आवश्यकता हो सकती है.
वहीं, डाउन सिंड्रोम से बचने का का कोई तरीका नहीं है. यदि आपको डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे के होने का उच्च जोखिम है या आपके पास पहले से ही डाउन सिंड्रोम वाला एक बच्चा है, तो महिलाएं गर्भवती होने से पहले एक आनुवंशिक विशेष से सलाह ले सकती हैं.
