हाईकोर्ट : निचली अदालत की कार्यशैली पोस्ट ऑफिस की तरह, हाथरस के एक मामले में अदालत ने की तल्ख टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि निचली अदालत न सिर्फ पुलिस विवेचना पर आंख मूंद कर भरोसा कर रही है, बल्कि पोस्ट ऑफिस की तरह काम करते हुए याचियों की आपत्तियों को भी खारिज कर रही है। यह तल्ख टिप्पणी न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने हाथरस के याची संजीव रावत उर्फ टीटू की ओर से सीजेएम हाथरस की अर्जी को खारिज करने वाले आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए की।
 मामला हाथरस के कोतवाली थानाक्षेत्र का है। लाल वाला पेच निवासी मधु शंकर अग्रवाल ने अशोक रावत और संजीव रावत के खिलाफ भयादोहन का मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया कि दोनों भाई राजेश टोंटा गैंग के भूमाफिया हैं। मोहल्ले की कीमती जमीनों को कब्जाने के लिए भूमि मालिकों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज करवाते हैं। फिर, जमीन का सौदा कौड़ियों के भाव करके जबरन कब्जा करते हैं।
शिकायतकर्ता का कहना है कि लगभग 200 करोड़ रुपये की भूमि और संपत्ति उनके भी पास है। दोनों भूमाफिया उसके घर में घुस कर धमकी दे गए हैं कि उनके दोनों लड़के का अपहरण करवा देंगे। फर्जी मुकदमे लिखवा देंगे। इस एफआईआर पर विवेचना के बाद कोतवाली पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भयादोहन, घर में घुस कर जान से मारने की धमकी जैसी धाराओं में सीजेएम कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर दिया।
निचली अदालत ने चार्जशीट पर आंख मूंदकर किया भरोसा
याची ने दोषमुक्त होने संबंधी उन्मोचन प्रार्थना पत्र दाखिल किया, जिसे सीजेएम कोर्ट ने खारिज कर दिया। विचारण के लिए आरोप भी निर्मित कर दिए। इसे याची संजीव रावत ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। याची की अधिवक्ता श्रेया गुप्ता ने दलील दी कि निचली अदालत ने केस डायरी का अवलोकन कामचलाऊ तरीके से किया। साक्ष्यों से प्रथम दृष्टया भयादोहन का अपराध नहीं बन रहा है। एफआईआर और दर्ज बयानों से भी स्पष्ट है कि याची पर किसी मूल्यवान संपत्ति को हासिल करने का आरोप नहीं है।
याची की दलीलों और दस्तावेजों के अवलोकन के बाद कोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने पुलिस द्वारा दाखिल आरोप पत्र पर आंख मूंद का भरोसा किया। इसी आधार पर न सिर्फ याची का उन्मोचन प्रार्थना पत्र खारिज किया, बल्कि उसके विरुद्ध उन आरोपों को भी विचारण के लिए निर्मित कर दिया, जो प्रथम दृष्टया बनते ही नहीं हैं।
विवेक का प्रयोग किए बिना स्वीकार किया चार्जशीट
कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पारित आदेश पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि निर्णय लेते समय ट्रायल कोर्ट ने पोस्ट आफिस की तरह काम किया। न्यायिक विवेक का प्रयोग किए बिना आरोप पत्र स्वीकार कर लिया और उसी को सच मान लिया। कोर्ट ने न्यायिक कार्यशैली के विपरीत पारित आदेश से भयादोहन की धाराओं को रद्द करते हुए याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। हालांकि, कोर्ट ने शेष आरोपों पर नियमानुसार विचारण करने का आदेश पारित कर दिया।


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