खेलों की ओर हमारे कदम

By: divyahimachal : राष्ट्रीय खेलों में हिमाचल के नाम रहे पदक तसदीक करते हैं कि पर्वतीय हवाओं की दृढ़ता में, राष्ट्र गान की ध्वनि के लिए हमारे फेफड़े कितने ताकतवर हैं। पदकों की एक श्रृंखला इस बार बनी है, जहां एथलेटिक्स में सीमा राष्ट्रीय फलक पर दौड़ कर अव्वल रही, तो महिला कबड्डी व हैंडबाल में राष्ट्र की स्टेज पर हिमाचल की बेटियों ने शिखर प्राप्त किए। हालांकि पदकों के हिसाब से प्रदेश 26वें स्थान पर दिखाई दे रहा है, लेकिन महिला खिलाडिय़ों ने दम दिखाते हुए हरियाणा की दिग्गज टीमों को पछाड़ा है। हिमाचल को अभी भी मणिपुर व गोवा से सीखना होगा, जिन्होंने क्रमश: छठे व नौवें स्थान पर रहते हुए यह प्रमाणित किया कि छोटे राज्य भी कमाल कर सकते हैं। हिमाचल में खेलों के प्रति सरकार, समाज और अभिभावकों को इस तर्ज पर सोचना होगा ताकि करियर के स्थान पर खेलों को प्राथमिकता मिले। कुछ प्रयास शुरू हुए हैं और हिमाचल के खिलाड़ी डीएसपी स्तर तक सीधे नियुक्ति पा रहे हैं, फिर भी ऐसे जुनून की पैरवी के लिए प्रदेश को दिल खोलना पड़ेगा। बेशक खेल छात्रावासों के माध्यम से कुछ टेलेंट बाहर निकला है, लेकिन ढांचागत उपलब्धियों के लिए प्राथमिकताएं तय करने की जरूरत है। पिछली जयराम सरकार के दौरान भी एक खेल नीति सामने आई, लेकिन कार्यान्वयन की दृष्टि से यह भी पिछड़ गई। अब नए खेल मंत्री के रूप में विक्रमादित्य सिंह ने खेल नीति को फिर से नई धार देने की हामी भरी, लेकिन जमीन पर हलचल दिखाई नहीं दी। यह दीगर है कि एचपीसीए ने कुछ महिला क्रिकेटर को राष्ट्रीय टीम तक पहुंचाया है।

हिमाचल में अगर स्नेहलता जैसे कोच के निजी प्रयास से शुरू हुआ हैंडबाल का काफिला आज भारत विजेता बन कर लौट रहा है, तो बाकी खेल संघों को भी सक्रियता के साथ परिणाममूलक प्रयत्न करने होंगे। वर्षों से प्रदेश में खेल प्राधिकरण, खेल महाविद्यालय व विभिन्न खेलों की अकादमियां स्थापित करने की घोषणाएं तो होती रहीं, लेकिन जमीनी प्रयास नगण्य हंै। केवल एक बार धूमल सरकार ने गंभीर प्रयास करते हुए खेल प्रशिक्षक नियुक्त किए थे, लेकिन यह कसौटी भी खत्म हो गई। अब ‘खेलो इंडिया’ के तहत केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने हमीरपुर में एक एक्सीलेंस सेंटर की बात कही है, जबकि इससे पूर्व धर्मशाला में राष्ट्रीय प्रशिक्षण के एक्सीलेंस सेंटर एवं छात्रावास के लिए आया 26 करोड़ का स्वीकृत बजट तहस-नहस हो गया। इसी तरह हाई अल्टीट्यूट प्रशिक्षण केंद्र को निर्धारित जमीन धूल फांक रही है। बेशक पर्यटन की दृष्टि से वाटर स्पोट्र्स की एक महत्त्वाकांक्षा परियोजना नादौन के लिए स्वीकृत हुई है, लेकिन हिमाचल को वाटर स्पोट्र्स का हब बनाने के लिए कृत्रिम झीलों का बेहतर इस्तेमाल करना होगा।

हिमाचल में खेल संघों की सक्रियता तथा खिलाडिय़ों की वित्तीय सुरक्षा के लिए अहम फैसले लेते हुए अगर ग्रामीण एवं स्कूली खेलों को बुनियादी तौर पर अहमियत दें तो वातावरण और सशक्त होगा। केंद्रीय विश्वविद्यालय अपने जदरांगल परिसर के तहत, अगर खेल विश्वविद्यालय की तरह मणिपुर से सीखे तो यह राष्ट्रीय स्तर पर एक मील पत्थर साबित होगा। हिमाचल में खेलों को अगले स्तर पर ले जाने के लिए राष्ट्रीय खेलों का आयोजन करते हुए एक साथ आधा दर्जन शहरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा उपलब्ध हो तो पर्वतीय आबोहवा में प्रशिक्षण के साथ-साथ ऐसा जज्बा भी परवान चढ़ेगा, जो आगे चलकर तमगों में हासिल होगा। हिमाचल में छिंजों के आयोजन को अगर व्यावसायिक पहलवानी के सेंटर के रूप में सुदृढ़ करें, तो यह क्षेत्र भी प्रदेश को नाम दे सकता है।


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