यह भी एक दौर

By: divyahimachal
सत्ता के आचरण में कांग्रेस के बीच कई धरातल और आसमान पर फिरौती मांगते नए गठबंधन। हिमाचल कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह के एक बयान ने नेता और नायक के मतभेद को आधार दे दिया, तो यह भी सामने आया कि ‘एक वह भी दौर था और एक यह भी दौर है।’ बेशक कई वरिष्ठ नेताओं की हार ने कांग्रेस का नायकत्व बदल दिया और इसीलिए राजनीति में नया गोत्र पूछा जाने लगा है। यह विडबंना है कि कांग्रेस के भीतर जो चिराग जले हैं, उनके आसपास ही अंधेरा है। पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष का मलाल यह चिन्हित कर गया कि सत्ता का हर पहर बदल गया या बदल गए वो तमाम पन्ने जिन्हें वीरभद्र सिंह ने लिखा था। क्या सरकार के गठन या ओहदों के आबंटन में कुछ धरातल खिसक गए हैं। कायदे से देखें तो परंपराएं बदलते मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने सत्ता के कैनवास पर अभी तक अपने रंग भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लिहाजा फ्रेम या सियासी हाशियों के बाहर रह गए चेहरों पर मायूसी का विराम है।
कुछ वरिष्ठ विधायक बगलें झांक रहे हैं, तो कार्यकर्ताओं के तेवर भी टकराने लगे हैं। कांग्रेस का हाथ जोड़ो कार्यक्रम अगर सराज विधानसभा में आपसी रंजिश का शिकार हो गया, तो यह असंतोष समझ लेना चाहिए। सरकार बनने की खुशियां अगर क्षेत्रीय संभावनाओं के आंगन में उदास बैठी हैं, तो हिमाचल के इतिहास से सबक लेना होगा। बेशक मंत्रिमंडल के गठन ने अपने भीतर की ऊर्जा को आसमान दिखाना शुरू किया है, लेकिन जिन क्षेत्रों या जिलों में रगड़ लग रही है, वहां की खामोशी में युद्ध खड़ा है। यह युद्ध प्रतिभा सिंह की जुबान से निकला, तो यह सराज के दो घटकों के बीच लड़ा भी गया। सत्ता को सरकार के भीतर देखें, तो कहीं भरपूर मजा है, लेकिन जहां नहीं है, वहां असंतोष भरा है। यह असंतोष कांगड़ा, बिलासपुर, मंडी की निगाहों से देखें, तो समझ आएगा कि क्यों राजेश धर्माणी, सुधीर शर्मा या राजेंद्र राणा सरीखे नेता अब उपेक्षित से विधायक नजर आ रहे हैं, तो कैबिनेट रैंक से लिपटे ‘अपने सनम’ पहचाने जा रहे हैं। कहना न होगा कि वर्तमान सत्ता में डंके की चोट पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अपना धरातल लिख रहे हैं। यह धरातल उनके भीतर की कांग्रेस है, जो वर्षों से संघर्षरत थी या जिसके पैमाने अब सरकार भर रही है। कहना न होगा कि सुक्खू के प्रभाव को समझने के लिए मुख्यमंत्री के राजनीतिक और प्रशासनिक निवेश को अलग-अलग करके देखना होगा। अब तक जिक्र उनके भीतर की सियासी ऊर्जा का होता रहा है, लेकिन बतौर मुख्यमंत्री उनका निवेश सरकार की कहावतें बदल रहा है और जिसकी प्रशंसा उनके राजनीतिक विरोधियों को भी करनी होगी। सरकार की इच्छाशक्ति का परिचय ताबड़तोड़ बैठकों और कार्य आबंटन के लक्ष्यों में देखा जा रहा है।
जाहिर है मुख्यमंत्री की शैली में ‘सरप्राइज एलिमेंट’ प्रशासन और राजनीति को एक समान चौकन्ना कर रहा है। पूरे प्रदेश की मिट्टी बदलने के संदर्भ अगर राजनीतिक हैं, तो सुशासन की दृष्टि से भी कुछ पहल ऐसी है, जो एहसास बदल सकती है। मसलन मुख्यमंत्री सुक्खू ने सभी जिलाधीशों को स्पष्ट कर दिया है कि कुछ दिनों में जिला मुख्यालयों में हेलिपोर्ट, तो विधानसभा क्षेत्रों तक इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशन और राजीव गांधी बोर्डिंग स्कूलों के लिए जगह चिन्हित कर दी जाए। यहां सरकार का एक अलग रंग है, जो मुख्यमंत्री को अति शक्ति प्रदान करता है और इसके प्रदर्शन से सुशासन के वास्तविक लक्ष्य सामने आते हैं, लेकिन कई परियोजनाएं ऐसी भी हैं जो वर्षों से राजनीतिक अभिशाप से ग्रस्त हैं। ऐसी कई अधूरी इमारतें, आधी अधूरी परियोजनाएं और लंबित कार्यक्रम हैं, जिन्हें सियासी तौर पर सजा मिल रही है। धर्मशाला केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना तथा कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार ऐसी ही लंबित परियोजनाओं की कहानी हैं, जो सियासत को केवल खलनायक के रूप में देख रही हैं। ऐसी परियोजनाएं सरकारों में नायकत्व ढूंढ रही हैं और यही सुक्खू सरकार की परीक्षा भी रहेगी। देखना यह भी होगा कि पिछले मुख्यमंत्रियों की परंपराओं में से सुक्खू सरकार क्या-क्या स्वीकार करती है और किस तरह नई परंपराओं का श्रीगणेश करती है। फिलहाल निचले क्षेत्रों में शीतकालीन प्रवास की कवायद में मुख्यमंत्री के कदम कौन सी दिशा तय करते हैं, यह एक ऐसा इंतजार है जो सत्ता के न्याय का मापतोल भी करेगा।
