ज़िंदगी के दर्द भरें लम्हों पर लिखी ऐसी कविता

रायपुर। राजधानी सहित पूरे प्रदेश में वर्षा हो रही है ऐसे में एक कवि- कार्तिक नितिन शर्मा ने कुछ ज़िंदगी के चंद लम्हों को समेटकर कविता की कुछ पंक्तियां लिखी है।
कुछ दर्द लिए थी सिमटी
अब हुआ सवेरा जो अब
मन हर्षित करने आ गई
शीतल ठंड हवाओं संग
रोम-रोम आ सिहरी
चंचल शोख अदाए ले
उर में नव उमंग जगा गई
होठों की लाली इसकी
मन मे मेरे आ मचली
मुख की प्यारी छवि ले चारों
ओर रश्मि की लड़िया फैला गई…
लिखने को कहो तो मैं,
लिख दूंगा सच का निवाला,
सच तो कड़वा है,
पत्र फाड़ चले,
तुम राह पकड़,
पर इसे जुल्मों ने झेला है,
इस झूठ पनपती दुनिया में,
सच-सुबक-सुबक कर दुबक रहा है,
मैं खोल कर अब क्या लिख दूं,
दुनिया झूठों का मेला है,
सच खेल कबड्डी चलता है,
झूठ तकदीरें बांट रहा है,
ना तुम दोषी, ना हम दोषी,
खुलकर सबने खेल खेला है,
झूठ सच का मानव बन बैठा,
करुणा धुलती, साफ रही है,
ये मानवता का उद्धार नहीं,
लगा रहा सदा झूठ का मेला है,
जो कल झूठा था, आज सच्चा है,
थाली बिन रोटी खाली खेला है,
मेहनत को कहा, सच की पूजा,
उसके फल को कहा मीठा है,
ईमान पकड़ जो जिद्द में है,
वह खींच रहा, झूठ का खेला है,
किसने चाहा, हाल जरा,
रोता फुटपाथ अकेला है,
बोलो में क्या झूठ कहूं,
क्या सच सुबह की बेला है
