विद्युत की गति से पहुंचता है हमारे दिमाग में संदेश

भोपाल: दिमाग किसी भी प्राणी के शरीर में सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट की तरह काम करता है. यह किसी क्लास मॉनिटर की तरह है. जिसका काम होता है, सभी अंगों को सुचारू रूप से चलाना. जरूरत के हिसाब से निर्देश जारी करना और यह सब कुछ विद्युत की सी गति से होता है. इतनी तेजी से कि हमें पता ही नहीं चलता कि किसी मक्खी द्वारा परेशान किए जाने पर कब हम उसे हाथ से झटक देते हैं. जरा सोचिए, यह सब यदि धीमी गति से होता तो? कोई मक्खी आपके कानों में गुनगुना रही होती तो आपके कान के ज्ञानतंतु पहले यह संदेश भेजते कि कुछ गुनगना रहा है. दिमाग में फिर इस गुनगुनाहट की रूपरेखा तैयार होती. पता चलता कि यह एक मक्खी है, जिससे अरुचि पैदा हो रही है. फिर कई गणनाओं के बाद पता चलता कि एक कीड़ा जिसे मक्खी कहा जाता है, कानों के आसपास मंडरा रही है. फिर यह गणना होती कि बाएं हाथ को कितनी तेजी से और किस निशाने पर घुमाना है. जिससे उस मक्खी को मारा जाए या नहीं. अंत में दिमाग हाथ के स्नायु दिमाग से प्रसारित संदेश का पालन करते. काफी लंबी प्रक्रिया लगती है. वास्तव में होती भी यही है, परन्तु सब कुछ इतने कम समय में होता है कि हमें पता ही नहीं चलता. हमारे ज्ञानतंतु को विद्युत सिग्नल दिमाग की तरफ प्रेषित करते हैं. उनकी गति भिन्न-भिन्न होती है. मक्खी से परेशान किए जाने पर कान में स्थित ज्ञानतंतुओं द्वारा भेजे गए संदेश और दिमाग से उसे संदेश की गणना करने के बाद हाथ के स्नायुओं को झटका देने के दिए गए संदेश में करीब 15 मिलीसेकंड का फर्क हो जाता है, क्योंकि कान द्वारा भेजा गया संदेश अपनी कम दूरी की वजह से अपेक्षाकृत अधिक तेजी से पहुंचता है और दिमाग द्वारा उसकी गणना में लगने वाले के बाद हाथ के स्नायुओं को भेजे जाने वाले सिग्नल पहुंचाने में थोड़ा अधिक समय लग जाता है. परंतु वह फर्क भी मिली सेकंड मेें ही होता है.
स्नायुओं द्वारा भेजे गए संदेश और ज्ञान तंतुओं द्वारा भेजे गए संदेशों की गति में भी फर्क होता है. स्नायुओं द्वारा भेजा गया, संदेश ज्ञान तंतुओं के संदेश की अपेक्षा अधिक तेजी से दिमाग तक पहुंचता है.
शिशु में संदेश पहुंचने की गति होती है धीमी

विद्युत सिग्नलों की गति और दिमाग से उसकी गणना में लगने वाला समय उम्र के हिसाब से बदलता भी है. नवजात शिशु में यह गति व्यस्क की तुलना में कम होती है. इसके बाद स्नायुओं द्वारा भेजे गए संदेश और ज्ञानतंतुओं द्वारा भेजे गए संदेशों की गति में भी फर्क होता है. स्नायुओं द्वारा भेजा गया, संदेश ज्ञानतंतुओं के संदेश की अपेक्षा अधिक तेजी से दिमाग तक पहुंचता है. स्पर्श के संदेश की गति वयस्क में लगभग 76 मीटर प्रति सेकंड की होती है. जबकि पीड़ा के संदेश की गति धीमी, यानी 61 मीटर प्रति सेकंड होती है. चलते समय पांव के अंगूठे पर ठोकर लगने पर हमें स्पर्श का अहसास दर्द के अहसास से पहले हो जाता है. दर्द का अहसास थोड़ी धीमी गति से प्राप्त होता है और दिमाग की गणना के बाद हमें दर्द की तीव्रता का अहसास होता है. शिशुओं में यह अहसास धीमी गति से होता है. तभी किसी शिशु को चोट लगने पर वह थोड़ी देर चुपचाप खड़ा रहता है. फिर रोना शुरू करता है. वयस्क होने पर दोनों अहसासों के बीच का फासला नगण्य हो जाता है.

 


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