आसपास मंडराते अपराध

 By: divyahimachal  
ऊना में चोरी व डकैती की दो घटनाओं ने कानून-व्यवस्था की चुनौतियों को नए अर्थ दिए हैं। दोनों ही मामलों में कुछ सामान्यताएं हैं और इनके भीतर समाज भी अपने लिए कुछ संदेश बटोर सकता है। चिंतपूर्णी के समीप बुजुर्ग दंपति व ऊना के नजदीक मां-बेटी के अकेलेपन को लूटने का प्रयास हुआ है। लुटेरे योजनाबद्ध तरीके से जिस तरह लूट को अंजाम दे रहे हैं, वहां यह तो साबित होता है कि अब संगठित अपराध की श्रेणी में हिमाचल भी संवेदनशील हो चुका है। ऐसी परिस्थितियां केवल कानून-व्यवस्था के पहरे में नहीं उभरेंगी, नामुमकिन है, बल्कि समाज के खंडित अध्यायों में ऐसे नासूर बढ़ते जाएंगे। सामाजिक पहरे पहले आत्मसुरक्षा के दायरों में सामुदायिक भावना को प्रतिष्ठित करते थे और जहां साझी विरासत में चौकसी की एक ऐसी दीवार खड़ी रहती थी, जो किसी अक्षम या मजबूर व्यक्ति को भी अकेला महसूस नहीं होने देती थी। विडंबना यह है कि अब सामाजिक स्वरूप में इतनी दरारें, इतने अहंकार और स्वयं सिद्ध जीवन के बिखराव हैं कि हम एक-दूसरे से अनभिज्ञ संबंधों की नई परिपाटी की दूरियों में सफलता के निजी मुकाम खोज रहे हैं। इन दोनों घटनाओं में अगली सदी के संकेत दर्ज हैं, इसलिए इनका गहराई तक विश£ेषण करना होगा। कानून-व्यवस्था की दृष्टि से हिमाचल को अपने तौर तरीके बदलने की हिदायतों के बीच पुलिस प्रबंधन की सारी रिवायत बदलनी होगी। अब पारंपरिक सोच में कम से कम यह बदलाव तो लाना ही पड़ेगा कि हिमाचल के आर्थिक पहलू, सामाजिक महत्त्वाकांक्षा, युवा आचरण,कमाई के स्रोत तथा सूचना प्रौद्योगिकी के निरंतर प्रसार से पैदा हो रहे खतरे, सामान्य दृष्टि से संबोधित नहीं होंगे। हिमाचल की प्रगति के अक्स ने न केवल जीवन को समृद्ध किया है, बल्कि पूरे प्रदेश की संरचना को भी बदल दिया है। यहां गांव से शहर तक की परिस्थितियां एक समान व्यवस्था चाहती हैं, तो इसी रूप में पुलिस को अपने सुरक्षा चक्र बढ़ाने पड़ेंगे। कुछ समय पहले तक जो प्रदेश रात्रि को शंातिप्रिय विराम चुन लेता था, वह अब चौबीस घंटे सक्रियता के साथ अपनी आर्थिक कहानियां सुधार रहा है। जानकारियों के तालाब में ऐसे तंत्र मौजूद हैं, जो कानून-व्यवस्था के खिलाफ अपने आपराधिक मसंूबों का ताना-बाना बुन रहे हैं। ऐसे में सुरक्षा की सेंधमारी को रोकने के लिए हाई-वे पैट्रोलिंग, पुलिस सूचना तंत्र, रैपिड एक्शन फोर्स तथा रात्रिकालीन चौकसी के इंतजाम बढ़ाने पड़ेंगेे। अब अपराधी सूचना प्रौद्योगिकी के जरिए शिकार खोजता है और अपने तरीकों से गच्चा देता है।
ऐसे में मैट्रो जैसे अपराध हमारे आसपास मंडराने लगे हैं। प्रदेश को पुलिस प्रबंधन के विविध आयाम स्थापित करते हुए हिमाचल की ग्रामीण, शहरी, पर्यटन व यातायात व्यवस्था को मुकम्मल करना होगा। मसलन शहरी विकास की जरूरतें अगर नगर निगमों के गठन तक पहुंच गई, तो इनके पुलिस प्रबंधन के लिए आयुक्त नियुक्त होने चाहिएं, जबकि ग्रामीण या अद्र्धशहरी क्षेत्रों के लिए अलग से ग्रामीण व औद्योगिक क्षेत्रों के लिए प्रबंध होने चाहिएं। प्रदेश में बढ़ते आर्थिक अपराध तथा नशे के अवैध धंधों से उपजे खतरों को आखिर कब तक नजरअंदाज करेंगे। बीबीएन जैसे क्षेत्र की अनुमानित पांच लाख की आबादी को परिभाषित करती पुलिस व्यवस्था चाहिए, तो तमाम बार्डर एरिया की रखवाली के लिए चौबीस घंटे पैट्रोलिंग चाहिए। ऊना की दोनों घटनाएं ऐसी निशानदेही कर रही हंै, जहां अपराध की चुनौती को हम किसी एक निष्कर्ष से साबित नहीं कर सकते। सामाजिक अकेलापन अगर बुजुर्गों, एकल नारियों या महिला मजबूरियों को केवल सरकार के सहारे सुरक्षित मान रहा है, तो यह मुगालता तुरंत दूर होना चाहिए। समाज के ऐसे तबके को सुरक्षित निगाहों से देखने की जरूरत और इसमें स्थानीय निकायों, सामाजिक संगठनों, प्रशासनिक योजनाओं तथा सामाजिक हस्तक्षेप की पहल अपेक्षित है। हिमाचल में बढ़ रहे अपराधों के सामाजिक व आर्थिक प्रभाव पर विस्तृत अध्ययन के अलावा सामाजिक तालमेल से ऐसी विभाजक रेखाओं पर छूट रहे परिवारों को सुरक्षा का एहसास कराने की जरूरत है।


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