पड़ोसियों के बजट से

By: divyahimachal  
हिमाचल के पड़ोसी पंजाब का बजट जिस तरह रूपांतरित हो रहा है, उसके करीब प्रदेश का बजटीय आचरण, कांग्रेस की गारंटियों का आवरण और नई सरकार के खजाने का संस्करण देखा और समझा जाएगा। पंजाब में आप की सरकार ने कुछ खुशखबरियां सुनाईं, तो कुछ वित्तीय खुशफहमियों का पिटारा भी दिखाया है, यानी कि गारंटियों के इम्तिहान में महिलाओं के बीच बंटने वाले एक हजार रुपए का विवरण अभी लुकाछिपी कर रहा है। यहां हिमाचल में भी बजट के अर्थ की गिनती में गारंटियों की व्यावहारिकता के सवाल कहां तक हल होंगे या सुक्खू सरकार की प्राथमिकताओं में रूपांतरित होते नए मकसद की निगाह में नई सुर्खियों का सुरमा कितना गहरा होता है, यह इंतजार रहेगा। ‘रंगले पंजाब’ ने अपनी बजटीय शक्ति में शिक्षा-चिकित्सा के वादों में राजस्व घाटा 3.32 और वित्तीय घाटा 4.98 प्रतिशत चुन लिया है। पंजाब में कर्ज की हांडी पर चढ़ा बजट अपनी वित्तीय व्यवस्था की जिन कमजोरियों से रूबरू है, कमोबेश वैसी ही परिस्थितियों से जूझ रहे हिमाचल की बजटीय तकदीर के तिनके कितनी हिफाजत से चुने जाएंगे, यह सुक्खू सरकार के इरादों पर निर्भर करेगा। वैसे अब तक के संकतों में मुख्यमंत्री ने ऐसी रूपरेखा का समां बांधा है जो सरकार की फिजूलखर्चियों को बेनकाब कर चुकी है। डिनोटिफिकेशन से निरर्थक हुए पिछली सरकार के अंतिम चरण के फैसलों को अगर बजट के संदर्भों में पढ़ा जाए, तो हिमाचल का आगामी बजट आर्थिक आधार पर नपे-तुले कदम ले सकता है।
जो सरकार 23 कालेजों के औचित्य का मूल्यांकन करते हुए 19 संस्थानों को बंद करने का साहस दिखा सकती है, वह आगे चल कर कई अलाभकारी बोर्ड-निगमों की संख्या भी घटा सकती है। पंजाब का बजट बता रहा है कि वहां 347542 करोड़ कर्ज का दबाव किस तरह वित्तीय व्यवस्था को बिगाड़ रहा है, तो यहां भी सुक्खू के बजट का मुकाबला 75 हजार करोड़ के ऋण की परतों से रहेगा। इन परतों के फफोले कब तक बर्दाश्त किए जाएं या कब तक उधारी की सांसों में जनता के साथ वित्तीय आंख मिचौनी की जाए। यह दीगर है कि पंजाब अपनी आमदनी के बूटे को शराब की बोतलें चढ़ा रहा है और इसी तरह के सेस व महंगी शराब के आखेट से हिमाचल भी आर्थिक चक्की पीस पाएगा। पड़ोसी राज्य ने खेती से बागबानी तक अपने लक्ष्यों की बरसात की है, तो सेब आर्थिकी के मजमून भी लिखे हैं। ऐसे में हिमाचली बागबानों के लिए अब सेब से नीचे उतर कर कुछ नए ख्वाबों की खेती करनी होगी। हिमाचल सेब राज्य की चादर ओढक़र अन्य विकल्पों की तरफ पूरी तरह से नहीं देख पाया है और न ही कृषि व बागबानी विश्वविद्यालयों ने किसान-बागबान के साथ मिलकर नए विकल्प और नवाचार तैयार किए। प्रदेश के किसान की सीधी लड़ाई शैतान बंदर और आवारा जानवरों से है और इसी के परिप्रेक्ष्य बजट से मुखातिब राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। सरकारें मुफ्त अनाज की पेशकश में यह कैसे भूल सकती हैं कि हिमाचल के खेत और बागीचे से आवारा पशु और बंदर हटाने की सख्त जरूरत है, फिर भी पिछली भाजपा सरकार ने इस तरह की कोई इच्छा शक्ति नहीं दिखाई। पंजाब सरकार रेत खनन से बीस हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त करना चाहती है, तो सोचना यह पड़ेगा कि हिमाचल के रेत माफिया से छीनकर प्रदेश के राजस्व को कैसे बढ़ाया जाए। हिमाचल का जल शक्ति विभाग केवल जलापूर्ति या सिंचाई की आपूर्ति नहीं, बल्कि खड्डों व नदियों में बहते संसाधन से सोना बटोरने का है।
वैज्ञानिक ढंग से खड्डों व बरसाती नदियों का चैनलाइजेशन न केवल बाढ़ जैसे नुकसान से मुक्ति दिलाएगा, बल्कि आवश्यक खनन पैरवी से रेत-बजरी के माध्यम से राजस्व भी उगाह सकता है। पंजाब रेत-बजरी से बीस हजार करोड़ का राजस्व प्राप्त करना चाहता है, तो हिमाचल कम से कम दस हजार करोड़ राजस्व प्राप्ति का खाका बना सकता है। पंजाब राज्य अपनी सडक़ परियोजनाओं के अलावा शहरी निकायों व नए टाउनशिप बसा कर आर्थिकी बढ़ाना चाहता है। कुल 6596 करोड़ की राशि से शहरी ढांचे से रोजगार के अवसर तथा नागरिक सुविधाओं में बढ़ोतरी से आय बढ़ाने का ऐसा संकल्प हिमाचल की शहरी व्यवस्था के काम आ सकता है। ग्रेटर लुधियाना क्षेत्र विकास तथा अर्बन एस्टेट बठिंडा जैसी परियोजनाओं से सीखते हुए हिमाचल को ऊना की परिधि में एक नया शहर बसाने का संकल्प लेना होगा। यह इसलिए क्योंकि साथ लगते पंजाब व चंडीगढ़ के दायरे में विकसित हो रही रियल एस्टेट में हिमाचलियों की भागीदारी पचास फीसदी से भी कहीं अधिक है। पंजाब के बजट की खूबियों और खामियों का विश्लेषण हिमाचल के बजट को कुछ सीखने, कुछ संभलने और कुछ नया करने की जरूरत समझा सकता है।


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