राज्यों के विधासभा चुनाव तय करेंगे बसपा के आनंद का भविष्य

लखनऊ: बसपा की बागडोर अपने हाथों में रखने वाली मायावती अब अपनी पार्टी की जिम्मेदारी अपने भतीजे आकाश आनंद के कंधों में डालती दिख रही हैं। उन्होंने चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव का उत्तरदायित्व आकाश को सौंप कर उन्हें आगे बढ़ाने में जुट गई हैं।
जानकर बताते हैं कि वह अपनी सेकेंड लाइन की लीडरशिप को धीरे धीरे तैयार कर रही हैं। इन राज्यों की सफलता और असफलता उनके भविष्य का निर्धारण करेगी। राजनीतिक जानकारों की मानें तो कई बार लोकसभा और विधानसभा में मिल रही असफलता के बाद मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को राजनीति में आगे बढ़ाना शुरू किया। पार्टी में अहम पद दिए। उन्हें चुनावी राज्यों में प्रभारी बनाया। इसके साथ ही आंदोलन, धरना प्रर्दशन और पद यात्राओं से दूरी बना चुकी पार्टी अब भतीजे को ठीक से लांच करने के लिए पद यात्राओं का सहारा ले रही है। जिससे भतीजे की इमेज ठीक हो जाए और उनके समाज में भी एक संदेश चला जाए।
आकाश आनंद ने राजस्थान विधानसभा चुनाव के मद्देनजर साढ़े तीन हजार किलोमीटर की ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय संकल्प यात्रा’ शुरू की। इस यात्रा को ‘बहुजन अधिकार यात्रा’ भी नाम दिया गया है। बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद के नेतृत्व में यह यात्रा निकाली गई। यात्रा प्रदेश के करीब 150 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। सियासी जानकर बताते हैं कि यात्रा के दौरान दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम वोट बैंक को साधने की रणनीति के तहत बसपा काम करेगी।
यात्रा की शुरूआत के मौके पर धौलपुर में हुई इस दौरान आकाश आनंद ने कहा कि सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के संकल्प के साथ बसपा प्रदेश में चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा कि बसपा का संकल्प होगा कि सत्ता में आने पर सभी वर्गों का भला हो। पीड़ितों, दलितों और शोषितों को राहत मिले। बसपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि आनंद को बहन जी ने बड़ी जिम्मेदारी दी है जिसमें चुनौती भी बहुत है लेकिन सीखने का खुला मैदान। वो अपनी बुआ के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को लागू कर रहें हैं। यूथ उनसे जुड़ेगा। उनके साथ कई अनुभवी नेता भी लगे हैं जो समय समय पर उन्हें आगे बढ़ने का ज्ञान देते रहेंगे।
उन्होंने कहा इन सभी राज्यों में चुनौती तो है, लेकिन सीखने को बहुत कुछ है। एक प्रकार से बसपा की मायवाती के बाद की नौजवानों के साथ आनंद ही तैयार कर रहे हैं। हाल में उनको राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव का जिम्मा सौंपा, उनके साथ दो भरोसेमंद नेताओं अशोक सिद्धार्थ और रामजी गौतम को लगाया है। इस बीच मध्य प्रदेश में आकाश काफी सक्रिय रहे।
उन्होंने आदिवासी दिवस पर राजभवन तक मार्च किया। भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर पर दिया गया उनका बयान काफी सुर्खियों में रहा। वरिष्ठ राजनीतिक जानकर प्रसून पांडेय कहते हैं कि आकाश आनंद को अपने को साबित करने के लिए चार राज्यों के चुनाव ही काफी हैं। हालांकि इनका अभी तक कोई बड़ा संघर्ष नहीं हैं। फिर भी मायावती ने उन्हें अच्छे से लांच किया है। राजस्थान के रण में उनके सामने निष्ठावान और जिताऊ उम्मीदवार का चयन करना अपने आप में बड़ी चुनौती है। क्योंकि बसपा के यहां पर किसी जमाने में छह विधायक हुआ करते थे, लेकिन अब वह कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। ऐसे ही मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में है, जहां बसपा के वोट शेयर में गिरावट पर रोक लगाने और अपने काडर को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है।
कई दशकों से यूपी की राजनीति को करीब से देखने वाले रतन मणिलाल कहते हैं कि मायावती के पास अभी तक दूसरे नंबर की लीडरशिप खत्म हो गई है। उन्होंने ज्यादा किसी पर भरोसा भी नहीं किया है। बीते तीस सालों बाद कोई ऐसा व्यक्ति मिला जिस पर पूरा भरोसा किया जा सकता है और वह निर्णय लेने के लिए भी वह स्वतंत्र हो सकते हैं। इनका रोल मायावती की अनुपस्थित में वह दूसरे नंबर की भूमिका अदा करेंगे। चाहे प्रचार हो किसी दल के साथ बातचीत करनी हो। यह मायावती की दूसरी आवाज होंगे। मायावती अपनी सेकेंड लीडरशिप तैयार कर रही है। वह धीरे धीरे अपनी जिम्मेदारी आकाश को दे दें तो इसमें ज्यादा आश्चर्य नहीं होगा। अगर इतना बढ़ाने के बाद भी आकाश अपेक्षा के अनरूप नतीजे नहीं लाते तो पार्टी का और ज्यादा डाउनफॉल शुरू हो सकता है।
मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं आकाश आनंद। उन्होंने लंदन के एक बड़े कालेज से एमबीए की डिग्री हासिल की है। बसपा प्रमुख मायावती ने 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव हारने के बाद सहारनपुर की रैली में आकाश को लांच किया था। उन्होंने अपने काडर के बीच संदेश भी दिया था। इंटरनेट मीडिया पर मजबूत हुई बसपा की पकड़ के पीछे आकाश आनंद का ही हाथ माना गया। 2019 के गठबंधन के दौरान जब लालू के बेटे तेजस्वी ने मायावती से भेंट की थी उस दौरान आकाश मौजूद थे। उसी चुनाव प्रचार के दौरान भी वो माया-अखिलेश की संयुक्त रैली में मंच पर दिखे थे। उस चुनाव के दौरान उन्होंने बसपा के लिए रणनीति बनाई थी। आगे आने वाले समय में उनकी भूमिका और मजबूत हो सकती है।
