जनता जाए कहां, हमारी सुरक्षा किसके भरोसे

जनता जाए कहां, हमारी सुरक्षा किसके भरोसे… त्वरित टिप्पणी किसी ने ठीक ही कहा है जमाने ने कहा ये हमारे रक्षक हैं, इनकी पनाह में हम सुरक्षित हैं, अब इनके चेहरों से नकाब हट गया, जमाना अब तेरा क्या होगा ? जब रक्षक ही भक्षक बन गया। क्या देश में आंतरिक सुरक्षा अब खतरे में नजर आने लगा है? जिनके भरोसे देश की जनता को सुरक्षा का विश्वास था, वह टूटता नजर आ रहा है। सुरक्षा कर्मी की मन:स्थिति आखिर क्यों बिगड़ती है यह चिंता का विषय है। देश किस ओर जा रहा है देशवासियों को ही समझ में नहीं आ रहा है। कुछ लोगों को इसका त्वरित फायदा मिल सकता है लेकिन दीर्घकालीन समय में देश के लिए यह हानिकारक ही साबित होगा। भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है, जितनी भी सरकारें आई प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा करती रही। भारत में लगभग 7-8 धर्म जाति के लोग आपसी सौहाद्र्र पूर्ण वातावरण में रहते हैं, जिसे अनेकता में एकता का नाम दिया गया है। इसी वजह से पूरे विश्व में भारत का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है। यहां सभी धर्म के लेग देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहते है। लेकिन अचानक ऐसी कौन सी स्थिति निर्मित हो गई कि लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे नजर आ रहे हैं। आखिर ये नफरत हमारे मुल्क को कहां ले जाएगी। जिसके भरोसे नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री और देश की140 करोड़ जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी वही रक्षक भक्षक बन जाए तो कैसे कोई अपने आप को सुरक्षित माने। यह पहली बार नहीं हुआ है इसके पहले भी इस तरह की घटनाएं सामने आ चुकी है। 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सबसे विश्वसनीय सुरक्षा गार्ड ने गोली मार कर हत्या कर दी। जात-पात और राजनीतिक अतिरेक से जवान इतने अधिक प्रभावित है कि वो अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी को ताक में रखकर हत्या पर उतारू हो जाता है। धर्म के नाम पर या सत्ता के नाम पर इस तरह की वारदात से देश में असुरक्षा की भावना नागरिकों में देखा जा रहा है। धर्म जाति के नाम पर पिछले कुछ सालों में दंगा, बलवा, जातिगत वर्ग विभेद को लेकर इस समय पूरे देश में असुरक्षा का वातावरण देखा जा रहा है। जिन हाथों में सुरक्षा की जिम्मेदारी वही मौत का भूखा नजर आ रहा है। देश की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठने लगे है। देश में आंतरिक सुरक्षा पुलिस, आरपीएफ और अन्य स्थानीय पुलिस बल पर होती है। जो आम नागरिकों की सुरक्षा को मोर्चा संभालते है। यदि वो ही मौत का सौदागर बन जाए तो कैसे कोई सुरक्षित महसूस कर पाएगा। प्रधानमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल सहित पूरा पक्ष-विपक्ष इस समय 2024 के लोकसभा चुनाव में इतने व्यस्त हो गए हैं कि इन्हें देश में घटित घटनाओं पर कोई फिक्र ही नहीं है। सिर्फ चुनावी कैम्पेन को प्रमुखता से ध्यान दिया जा रहा है। टीवी पर बहस और विपक्ष को लेकर सदन की गहमा-गहमी में देश को उलझा रखा है। दूसरी तरफ सुरक्षा कर्मी यात्रियों को भून रहा है। आखिर कौन है इस हत्या का जिम्मेदार जो सुरक्षा कर्मियों का माइंडवाश कर रहा है। जो अपने मूल कर्तव्य को भूूल कर हत्यारा बनने पर उतारू है। ताजा मामला महाराष्ट्र के पालघर में जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन में गोलीबारी की घटना ने सबको हैरान कर दिया है। रेलवे सुरक्षा बल के एक कांस्टेबल ने ट्रेन में चार लोगों की कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। जयपुर-मुंबई सेंट्रल एक्सप्रेस में सोमवार 1 अगस्त को कांस्टेबल चेतन सिंह ने पालघर रेलवे स्टेशन के पास अपने स्वचालित हथियार से आरपीएफ के सहायक उपनिरीक्षक टीकाराम मीणा और तीन अन्य यात्रियों की गोली मारकर हत्या कर दी। आरोपी ने अभी तक यह नहीं बताया है कि उसने यह कदम क्यों उठाया। अब जांच के नाम पर राजनीति होगी और मामला सालों तक पेंडिंग में रहना वाला है। इस घटना में पीडि़त तीन अन्य परिवार के बारे में किसी भी राजनेता ने बयान जारी कर सहानुभूति तक व्यक्त करने की जहमत नहीं उठाई । यह कैसा प्रजातांत्रिक मूल्य है।


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