फसल अवशेषों से खाद बनायें, इन्हे जलायें नहीं

श्रीगंगानगर: कृषि विभाग ने फसल अवशेषों को जलाने की बजाय खाद के रूप में इनका उपयोग करने की सलाह किसानों के लिये जारी की है।
कृषि विभाग के उप निदेशक डॉ. जीआर मटोरिया ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले धुएं में मौजूद जहरीली गैसों से मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने के साथ-साथ वायु प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता है।
फसल अवशेष जलाने से केंचुऐ, मकडी जैसे मित्र कीटों की संख्या कम हो जाती है। इससे हानिकारक कीटों का प्राकृतिक नियंत्रण नही हो पाता है। फलस्वरूप कीटों को नियंत्रित करने के लिये महंगे कीटनाशको का इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है।
फसल अवशेष जलाने से मिट्टी में मौजूद लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या व उनके कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
जीवांश पदार्थ की मात्रा कम हो जाने से मिट्टी की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।
(ब) फसल अवशेष को खेत की मिट्टी में मिलाने के लाभः-.
जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ती है, फसल अवशेष से बने खाद में पोषक तत्वों का भण्डार होता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ने से फसलों की पैदावार बढ़ती है तथा फसल को पोषक तत्व अधिक मात्रा में मिलते है।
भूमि में नमी बनी रहती है।
भूमि में खरपतवारों के अंकुरण व बढ़वार में कमी होती है।
फसल अवशेष भूमि के तापमान को बनाये रखते है। गर्मियों में छांयाकन प्रभाव के कारण तापमान कम होता है तथा सर्दियो में गर्मी का प्रवाह उपर की तरफ कम होता है, जिससे तापमान बढ़ता है।
मृदा की ऊपरी स्तर पर छेड़छाड़ न होने के कारण केंचुआ आदि सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है।
मिट्टी भुरभुरी बनने से मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है।
भूमि से पानी के भाप बनकर उड़ने में कमी आती है।
(स) ऐसे करें फसल अवशेष का प्रबंधनरू.
गेहूँ, जौ, सरसों, धान आदि फसलों की कटाई के बाद खेत में शेष रहे फसल अवशेषो को मिट्टी में मिलाये, साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई करें। इसके बाद ट्राईकोडर्मा का भुरकाव करना चाहिए। ऐसा करने से फसल अवशेष लगभग 15 से 20 दिन में कम्पोस्ट में बदल जायेगे।
अगली फसल के लिए मुख्य एंव सूक्ष्म पोषक तत्व अधिक मात्रा में प्राप्त होंगे।
टै्रक्टर चालित कल्टीवेटर में जाली फंसाकर फसल अवशेष को आसानी से इकट्ठा कर, गड्ढ़े में गोबर का छिड्काव कर दबाने के बाद ट्राइकोडर्मा इत्यादि डालकर बढ़िया कम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है।
परन्तु आधुनिक मशीनरी जैसे जीरो ड्रिलए बीज व खाद ड्रिल, हैप्पीसीडर, टरबो सीडर तथा रॉटरी डिस्क द्वारा सीधी बुवाई आसानी से की जा सकती है।
कृषि यंत्रों द्वारा फसल अवशेष को मिट्टी में मिलायें
फसल अवशेषों के रहते बुवाई में कठिनाई आती है। सुपर एसएमएस या स्ट्रा चोपर से फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काटकर भूमि पर फैलाये तथा हैप्पी सीडर द्वारा गेहूं की सीधी बिजाई करें। फसल अवशेषों को मल्चर द्वारा मिट्टी में मिलायें तथा उल्टा हल (रिवर्सिबल प्लो) द्वारा फसल अवशेष को मिट्टी में दबाएं। चोपर, है-रैक, स्ट्रा बेलर का प्रयोग करके फसल अवशेष की गांठे बनाएं और आमदनी बढ़ायें। जीरो ड्रिल, रोटावेटर, रीपर बाइंडर व स्थानीय उपयोगी व सस्ते यंत्रों को भी फसल अवशेष प्रबंध हेतु अपनायें। इससे भूमि में नमी बनी रहने के कारण दो फसलें आसानी से ली जा सकती है।
1. मल्चरः- फसल विशेष धान की पराली इत्यादि को काटकर उनके टुकड़े करता है जिससे फाने जलाने नहीं पड़ते इस यंत्र के उपयोग से फार्म में आग लगाने की वजह से पर्यावरण तथा भूमि के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान से बचाव कर सकते हैं। धान की कटाई के बाद गेहूं की तुरंत बुवाई को सरल बनाता है। भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों व जीवाणुओं को संरक्षित करता है। मल्चर के उपयोग से मिट्टी में मौजूद नमी संरक्षित होती है। फसल अवशेष जैसे परालीए पत्तियों व डंठल आदि मिट्टी में मिलकर जैविक खाद बन जाते हैं।
2. रिवर्सिबल प्लोंः- फसल अवशेष धान की पराली इत्यादि को जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाता है। गहरी जुताई करके फसल अवशेष को मिट्टी में अच्छी तरह दबा देता है। मृर्दा की जल्द धारण व जल ग्रहण क्षमता को बढ़ाता है। मृदा में मौजूद हानिकारक कीटाणु को नष्ट करता है। खरपतवार के बीजों को नष्ट करके खरपतवार को नियंत्रित करता है।
3. हैप्पी सीडरः- धान की पराली को आग लगाने से होने वाले बड़े पैमाने से प्रदूषण की रोकथाम एवं भूमि के स्वास्थ्य में आ रही गिरावट को इस मशीन के प्रयोग से रोका जा सकता है। कंबाइन से कटे धान के खेतों में पराली को बिना खेत जोते सीधी बिजाई अच्छी तरह से करता है। धान कटे खेतों में पराली को इस मशीन के साथ काटकर मल्च के रूप में रखने से जैविक खाद भूमि में मिलती है। पराली का बचा हुआ मल्च/पराल रूपी सतह में खेत में होने से पानी की नमी ज्यादा समय बनी रहती है व खरपतवार कम पैदा होता है। बिना बुवाई हैप्पी सीडर से गेहूं की सीधी बजाई करने से 800 से 1000 रुपए तक की बचत होती है।
4. स्ट्रा बेलर फसल अवशेष की गांठे बनाएं स्ट्रा बेलर की मदद से धान की प्रणाली की गांठे बनाई जा सकती हैं। इन गाठों को अन्य स्थानों पर ले जाकर चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। बिजली उत्पादन फैक्टरी में कचरे से बनने वाली बिजली में गाठों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
5. जीरो टिल सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल इस विधि द्वारा गेहूं की बिजाई पर धान के फाने जलाने नहीं पड़ते। फाने चाहे कितने भी बड़े क्यों ना हो उसी में ही गेहूं की बिजाई हो जाती है। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति व संरचना उत्तम बनी रहती है। इस विधि द्वारा गेहूं की बिजाई करने पर गेहूं का जमाव बढ़िया होता है और पौधे ज्यादा स्वस्थ एवं गहरे रंग के निकलते हैं। इस विधि से बिजाई के बाद पहला पानी लगाने पर गेहूं के पौधे पीले नहीं पड़ते। इसमें 7-8 बार गेहूॅ की जुताई का खर्च जो कि लगभग 1000 से 1200 रूपए तक होता है जिसमें बचत होती है। जीरो टिल मशीन द्वारा गेहूं की बिजाई करने पर मंडूसी खरपतवार का 30 से 40 प्रतिशत कम जमाव होता है क्योंकि इस मशीन द्वारा भूमि के साथ कम से कम छेड़छाड़ होती है।
चेतावनीः-
राजस्थान राज्य की अधिसूचना दिनांक 27.08.2015 के द्वारा वायु अवशेष 19 (5) (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत् फसल अवशेष जलाना प्रतिबंधित किया गया है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने फसल अवशेषों को जलाने पर भूमि स्वामित्व के अनुसार 2 एकड़ से कम भूमि वाले किसानों पर 2500 रूपये, 2 एकड़ से 5 एकड़ भूमि वाले किसानों पर 5000 रूपये तथा 5 एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों पर 15000 रूपये प्रति घटना जुर्माना लगाने का प्रावधान किया है। अधिक जानकारी के लिए निकटम कृषि कार्यालय में सम्पक करें अथवा किसान कॉल सेन्टर के निःशुल्क दूरभाष नं. 18001801551 पर बात करें।
