बेसहारा गौवंश की सुध ले नई सरकार

भारतीय संस्कृति के चार स्तंभों में श्री गंगामाता, श्री गीतामाता, श्री गायत्रीमाता और गौमाता शामिल हैं। इन चारों को शास्त्रों में मां शब्द से संबोधित किया गया है। गौमाता में सभी देवी-देवता वास करते हैं। गाय की सेवा से सभी देवों की पूजा संपन्न हो जाती है। हमारे कर्मानुष्ठान, यज्ञ तथा अन्य कोई भी धार्मिक कृत्य गौमाता के बिना संपन्न नहीं हो सकता है। आर्थिक दृष्टि से भी भारत में गाय का महत्त्व कम नहीं है। भारत में गोपालन की प्राचीनकाल से ही परम्परा रही है। इसलिए उस समय घी, दूध और दही की नदियां बहती थीं। ऋषियों के आश्रम जंगलों में होते थे। वहां हजारों गऊएं स्वतंत्र रूप से विचरण करती और जंगलों में चरती थीं। भगवान श्रीकृष्ण खुद गऊओं की सेवा करते थे। इसलिए उनका एक नाम ‘श्री गोपाल’ आज भी संसार भर में प्रसिद्ध है। गाय के दूध में जो स्वर्णतत्व पाए जाते हैं वे तत्व मां के दूध के अतिरिक्त किसी भी पदार्थ में नहीं मिलते हैं। नेचर पत्रिका के अनुसार गाय के दही में एक ऐसा मित्र बैक्टीरिया पाया गया है जो एड्स की बीमारी को फैलने से रोकने में तथा हृदय रोग की रोकथाम में सहायक होता है। गर्भवती महिला अगर चांदी की कटोरी में गाय के दूध में जमाए गए दही का सेवन नित्य करे तो गर्भ में पलने वाला बालक मेधावी और तेजस्वी बनता है।
महान संत स्वर्गीय श्री विनोबा भावे जी प्रात: गाय का दही खाते थे। इससे उनके पेट का अल्सर दूर हो गया था। गाय के दूध से बनी छाछ किसी भी प्रकार के नशे जैसे गांजा, भांग, तंबाकू, शराब, हीरोइन, स्मैक इत्यादि से होने वाले प्रभाव को कम ही नहीं करती, अपितु नशे का नियमित सेवन करने की इच्छा भी धीरे-धीरे खत्म करने की शक्ति रखती है। गाय के घी में अधिकतम प्राणवायु निर्माणक रसायन रहते हैं। एक चम्मच गाय के घी को कण्डों-उपलों की आग में आहुति देने पर एक टन से अधिक आक्सीजन बनती है जो अन्य किसी भी उपाय से असम्भव है। समस्त शुभ कार्यों में भूमि को प्रथम गाय के गोबर से लीपा जाता है। गोमूत्र मनुष्य के पापों का नाश करता है। आयुर्वेद के अनुसार पेट के रोग, लीवर की खराबी, कैंसर में गोमूत्र उपयोगी है।
गऊ माता के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र में इतने ज्यादा गुण होने के बाद भी आज जब गायें दूध देना बंद कर देती हैं तो पशुपालक उनको खड्डों, नदी-नालों के किनारे या कहीं दूर जंगल में बेसहारा छोड़ देते हैं। ऐसा करना हमारे सभ्य समाज के लिए बड़े ही दु:ख और शर्म की बात है। प्रदेश में पूर्व में रहे माननीय ग्रामीण विकास एवं पशुपालन मंत्री श्री वीरेन्द्र कंवर ने इन बेसहारा गौवंश को आश्रय दिलाने की काफी कोशिश की है, लेकिन अभी भी प्रदेश सरकार को बहुत कुछ करना बाकी है। लेखक ने 23.09.2022 को पिछली प्रदेश सरकार के माननीय मुख्यमंत्री और माननीय पशुपालन मंत्री को इन बेसहारा गौवंश के लिए गौसेवा आयोग द्वारा गौशालाएं तथा गऊ सैंक्चरी बनाने तथा गौसेवकों की भर्ती करने बारे कई जरूरी सुझाव भेजे थे जिनमें कुछ सुझाव यहां दिए जाते हैं : इस समय प्रदेश में जो लगभग दस हजार से ज्यादा बेसहारा गौवंश हैं, उनकी सेवा के लिए हिमाचल प्रदेश गौसेवा आयोग प्रत्येक जिले के प्रत्येक खण्ड में तीन-तीन गौशालाएं बनाए ताकि इन अभागे गौवंश को इनका खोया हुआ रैन बसेरा दोबारा मिल सके। इन 10000 बेसहारा गौवंश की सेवा के लिए गौसेवा आयोग 1000 गौसेवकों की भर्ती करे यानी 10 गौवंश पर एक गौसेवक नियुक्त हो जिसकी तनखाह प्रति माह 6000 रुपए तथा साथ में मुफ्त रिहायश और भोजन की व्यवस्था हो।
इन गौसेवकों को आठ या दस साल बाद की सेवा के बाद प्रदेश सरकार अपने विभागों या बोर्डों में चतुर्थ श्रेणी कर्मियों में नियुक्त करने का प्रबंध करे। जितने भी लोगों ने प्रदेश में गाय या बैल पाल रखे हैं, उनकी रजिस्ट्रेशन होनी चाहिए यानी उनके गौवंश कार्ड बनाए जाने चाहिए। यह कार्य पशुपालन विभाग द्वारा पंचायतों के सहयोग से करना चाहिए। अगर कोई पशुपालक अपने गौवंश को बेसहारा छोड़ता है तो उसको कम से कम 5000 रुपए का जुर्माना सरकार की तरफ से होना चाहिए। दोबारा छोडऩे पर सजा भी मिलनी चाहिए। जो प्रदेश सरकार ने प्रदेश की सीमा पर बैरियर लगाए हैं, वहां पर दूसरे प्रदेशों से आने वाले गौवंश की चैकिंग की जानी चाहिए। प्रदेश सरकार प्रदेश में गोमूत्र पर आधारित कोई बड़ी आयुर्वेदिक फार्मेसी स्थापित करे ताकि गौवंश पालने वालों को आर्थिक सहायता मिल सके और जनता को सस्ती आयुर्वेदिक औषधियां भी प्राप्त हो सके। गौसेवा आयोग द्वारा गैर सरकारी संस्थाओं को जो राशि 700 रुपए प्रति माह प्रति गौवंश दी जा रही है, उसको बढ़ाकर 1000 रुपए की जानी चाहिए। इसके साथ ही उपरोक्त सहायता राशि की 30 गौवंश की शर्त को घटाकर 11 गौवंश किया जाना चाहिए।
जो शामलात भूमि प्रदेश सरकार के पास वनों के साथ है, वहां सरकार उस भूमि का अधिग्रहण करके या किसानों से सही कीमत पर बंजर भूमि लेकर गौशालाएं बनाए। जो रकम सरकार ने शराब की बिक्री से 2 रुपए प्रति बोतल के हिसाब से गौ कल्याण कोष के लिए निर्धारित की है, उस रकम को 5 रुपए प्रति बोतल के हिसाब से निर्धारित करे। प्रदेश सरकार ने जो रकम बड़े मंदिर ट्रस्टों की आमदन का 15 फीसदी हिस्सा गौ कल्याण कोष के लिए निर्धारित किया है, उस रकम को बढ़ाकर 20 फीसदी करना चाहिए। प्रदेश सरकार गौ कल्याण कोष की बढ़ौतरी के लिए विधानसभा के प्रत्येक माननीय विधायक से 5000 रुपए प्रति महीना दान लेने की व्यवस्था करे। इसी प्रकार प्रदेश सरकार गौ कल्याण के लिए प्रदेश के पहली श्रेणी के प्रत्येक अधिकारी से 500 रुपए, दूसरी श्रेणी के प्रत्येक अधिकारी से 250 रुपए, तीसरी श्रेणी के प्रत्येक कर्मचारी से 100 रुपए, चौथी श्रेणी के प्रत्येक कर्मचारी से 50 रुपए तथा पेंशन प्राप्त करने वाले प्रत्येक अधिकारी-कर्मचारी से 50 रुपए प्रति महीना दान लेने की व्यवस्था शुरू करे। आशा है कि हिमाचल प्रदेश के नए माननीय मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू तथा उनकी नई सरकार प्रदेश के व्यापक जनहित में उपरोक्त दिए गए सुझावों को पढक़र गहन चिंतन करेगी, इन बेसहारा व बेजुबान गौवंश की पीड़ा को समझेगी तथा किसानों की खेतीबाड़ी की कई सालों पुरानी गम्भीर समस्या का अतिशीघ्र सही हल ढूंढने का पूरी तरह से जरूर प्रयत्न करेगी। लाखों की संख्या में आवारा पशुओं को तभी ठिकाना मिल पाएगा।
रणजीत सिंह राणा
सामाजिक कार्यकर्ता
By: divyahimachal
