बच्चे पर गुस्सा न करें, सतर्क रहें और विशेषज्ञों की राय सुनें

अगर आपके बच्चे के स्कूल से उसके व्यवहार या गतिविधियों को लेकर लगातार शिकायतें मिल रही हैं। अगर वह ज्यादा एक्टिव लगे तो उस पर गुस्सा न करें बल्कि उसे समझाने की कोशिश करें। क्योंकि वह जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहा है.ये अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी सिंड्रोम (एडीएचडी) के लक्षण हैं। राजधानी के मनोचिकित्सा केंद्र की ओपीडी में ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं. केंद्र के बाल मनोचिकित्सकों का कहना है कि हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा सक्रिय हो लेकिन कई बच्चे अधिक सक्रिय यानी हाइपरएक्टिव हो जाते हैं। जिसका उन पर बुरा असर पड़ता है.

घबराएं नहीं, इलाज संभव है

बच्चों में यह समस्या नई नहीं है, लेकिन लोगों में जागरूकता बढ़ी है, इसलिए इसके मामले सामने आ रहे हैं। रोजाना 15 से 20 नए मामले आ रहे हैं. इस सिंड्रोम के लक्षणों को नजरअंदाज न करें। घबराएं नहीं, इसका इलाज संभव है ताकि उन्हें अन्य विकारों से भी बचाया जा सके। अभिभावकों को जागरूक होने की जरूरत है.

15 से 20 मरीज पहुंच रहे हैं

केंद्र में बच्चों के लिए संचालित मनोरोग ओपीडी में मंगलवार और शनिवार को 40 से 50 मरीज आते हैं। जिसमें 15-20 बच्चे एडीएचडी से पीड़ित हैं। इसमें 4 से 14 साल तक के बच्चे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते इलाज न कराया जाए तो अन्य मानसिक रोग भी चपेट में आ सकते हैं। इस बीमारी का मुख्य कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन माना जाता है कि यह आनुवंशिकता और मस्तिष्क में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के कारण होता है।

इलाज-परामर्श दोनों कारगर… सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों का इलाज दवा और परामर्श दोनों से होता है। यह छह महीने से लेकर दो साल तक रहता है। कुछ मरीजों का इलाज लंबे समय तक भी चलता है। दवा सक्रियता को कम करती है, जिससे मरीज सामान्य स्थिति में आ जाता है। इसके लिए प्रैक्टिकल थेरेपी भी दी जाती है.


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