सुप्रीम कोर्ट ने कैदी को तत्काल रिहा करने का दिया आदेश, जानें क्या है पूरा मामला

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक कैदी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है, जिसे पटना उच्च न्यायालय ने अगली तारीख से जमानत दे दी थी। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि यह “आश्चर्यजनक” है कि उच्च न्यायालय ने कहा है कि 15 महीने की हिरासत पूरी करने के बाद आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाएगा,हालांकि आदेश में स्पष्ट निष्कर्ष दर्ज है कि वह जमानत पर रिहा होने का हकदार है।

पीठ ने गुरुवार को अंतरिम आदेश देते हुए कहा, (इस शर्त को छोड़कर कि याचिकाकर्ता को 15 महीने पूरे करने के बाद ही जमानत दी जाएगी) याचिकाकर्ता को लागू आदेश में शामिल नियमों और शर्तों पर तुरंत अस्थायी जमानत दी जाएगी। इस साल अगस्त में पारित अपने आदेश में, पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संदीप कुमार की पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता को “हिरासत में 15 महीने पूरे करने और 10 हजार रुपये के जमानत बांड प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा किया जाए।”

आरोपी राकेश पासवान पर 2021 में बिहार निषेध और उत्पाद (संशोधन) अधिनियम, 2018 और शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।

केंद्र पर क्यों बिफरा सुप्रीम कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर फिर से आपत्ति जताई है कि केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को ज्यों का त्यों नहीं मानती है बल्कि नामों की लिस्ट में से कुछ को चुन लेती है और कुछ पर हमेशा के लिए चुप्पी ठान लेती है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि और शीर्ष अदालत और हाई कोर्टों में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की तरफ से अनुशंसित नामों में से ‘पिक एंड चूज’ की प्रथा स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे परेशानी होती है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सरकार को भेद नहीं करना चाहिए क्योंकि नामों की सिफारिश कॉलेजियम की तरफ से जजों की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए की जाती है और नामों में छंटनी वरिष्ठता की प्रणाली बिगाड़ देती है। यह तीन सदस्यी बेंच सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की तरफ से अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से देरी पर एक याचिका की सुनवाई कर रही थी।

सुनवाई की शुरुआत में केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने सरकार के विचाराधीन सभी लंबित नामों पर फैसला करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। ऐसे 21 नाम हैं जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए सरकार के विचाराधीन हैं। उच्च न्यायालय के लिए नियुक्ति के लिए दस नाम हैं- पांच नाम जिन्हें कॉलेजियम ने दोबारा केंद्र के पास भेजा था और पांच को पहली बार भेजा गया था। इनके अलावा 11 जजों का ट्रांसफर किया जाना है।

पीठ ने इस बात पर भी असंतोष व्यक्त किया कि पिछले कुछ हफ्ते पहले दी गई चेतावनी के बावजूद केंद्र सरकार ने फैसला लेने में फुर्ती नहीं दिखाई। सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि सरकार को और ज्यादा धक्का देने की जरूरत है। उसने सुनवाई को 7 नवंबर के लिए स्थगित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बीते 26 सितंबर को केंद्र को कहा था कि उसके पास कॉलेजियम की तरफ से जिन 86 जजों के नाम भेजे गए हैं, उन पर कोई फैसला लेकर आए वरना समस्या का सामना करने को तैयार रहे।

 


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