नदी दिवस पर नदियों की स्थिति चिंताजनक


झारखण्ड |� सितंबर के चौथे विश्वभर में नदी दिवस मनाया जाता है. इस साल अंतरराष्ट्रीय नदी दिवस की थीम नदियों का अधिकार है, जो नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग करती है. नदियों की रक्षा के लिए नदी दिवस की शुरुआत 2005 में हुई थी.
कोल्हान में स्वर्णरेखा, खरकई, संजय, रोरो और कारो नदी है. बरसात में ये नदियां लबालब भर जाती है और दो से तीन महीने बाद इन नदियों में घुटने भर पानी रह जाता है. शहरी इलाकों में इन नदियों के तट पर अतिक्रमण तेजी से बढ़ा है, जिसके चलते नदियां सिकुड़ती चली जा रही है. वहीं, ग्रामीण इलाकों में बालू खनन से नदियों के प्रवाह और जलस्तर में कमी आ रही है. नदियों के संरक्षण के लिए सरकार के स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और न ही जागरूकता अभियान चलाया गया है और न ही सरकार ने एक भी योजना धरातल पर उतारी. पर्यावरणविद् दिनेश मिश्रा का मानना है कि यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में खरकई और स्वर्णरेखा सूख जाएगी. जलापूर्ति योजनाओं को पानी नहीं मिलेगा. वहीं, नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है.
नदियों के संरक्षण को लेकर सरकार ही नहीं, आमलोगों को सचेत होने की जरूरत है. बालू खनन से लेकर नदी तट पर पेड़ पौधे लगाने और नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सबको आगे आना होगा, अन्यथा लोग प्राकृतिक आपदा के शिकार होंगे.
-मनोज सिंह, पर्यावरणविद्
लाखों की प्यास बुझाती है स्वर्णरेखा और खरकई
पूर्वी सिंहभूम के लाखों लोगों की प्यास बुझाने वाली स्वर्णरेखा और खरकाई नदी गर्मी आते ही सूख जाती है. दोनों नदियां गंदे नाले में तब्दील हो गई है. इससे जमशेदपुर में 340 मिलियन लीटर प्रतिदिन पानी निकाला जा रहा है.
कारो नदी पर सारंडा वन क्षेत्र के लोग हैं निर्भर
सारंडा में बहने वाली कारो नदी को प्रदूषण मुक्त करना जरूरी है. कारों नदी सारंडा वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन का आधार है. नदी प्रदूषित होने से जन समस्या बढ़ती जा रही है. कारो नदी राज्य के सारंडा वन क्षेत्र के लोगों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत है.
चाईबासा की जीवन रेखा मानी जाती है रोरो नदी
चाईबासा की जीवन रेखा मानी जाने वाली रोरो नदी का भी अस्तित्व खतरे में है. बरसात के दिनों को छोड़ कर नदी नाले के रूप में बहती है. नदी का अधिकांश हिस्सा जलकुंभी से भर जाता है. चाईबासा फेनेटिक क्लब के सदस्यों द्वारा इसकी सफाई का प्रयास किया जाता है.
अस्तित्व खो रही सरायकेला की संजय नदी
सरायकेला से गुजरने वाली संजय नदी संरक्षण के अभाव में अस्तित्व खोने को विवश हैं. लोगों को जीवन देने वाली ये नदी आज अपनी ही सांसों की मोहताज बनी हुई है. कुछ वर्ष पहले नदियों के संरक्षण को लेकर नदी किनारे पौधरोपण की योजना बनी थी, लेकिन कारगर नही हो पाई. आज बारिश की कमी से नदी अपना अस्तित्व खोने लगी है.

झारखण्ड |� सितंबर के चौथे विश्वभर में नदी दिवस मनाया जाता है. इस साल अंतरराष्ट्रीय नदी दिवस की थीम नदियों का अधिकार है, जो नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने की मांग करती है. नदियों की रक्षा के लिए नदी दिवस की शुरुआत 2005 में हुई थी.
कोल्हान में स्वर्णरेखा, खरकई, संजय, रोरो और कारो नदी है. बरसात में ये नदियां लबालब भर जाती है और दो से तीन महीने बाद इन नदियों में घुटने भर पानी रह जाता है. शहरी इलाकों में इन नदियों के तट पर अतिक्रमण तेजी से बढ़ा है, जिसके चलते नदियां सिकुड़ती चली जा रही है. वहीं, ग्रामीण इलाकों में बालू खनन से नदियों के प्रवाह और जलस्तर में कमी आ रही है. नदियों के संरक्षण के लिए सरकार के स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और न ही जागरूकता अभियान चलाया गया है और न ही सरकार ने एक भी योजना धरातल पर उतारी. पर्यावरणविद् दिनेश मिश्रा का मानना है कि यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में खरकई और स्वर्णरेखा सूख जाएगी. जलापूर्ति योजनाओं को पानी नहीं मिलेगा. वहीं, नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है.
नदियों के संरक्षण को लेकर सरकार ही नहीं, आमलोगों को सचेत होने की जरूरत है. बालू खनन से लेकर नदी तट पर पेड़ पौधे लगाने और नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सबको आगे आना होगा, अन्यथा लोग प्राकृतिक आपदा के शिकार होंगे.
-मनोज सिंह, पर्यावरणविद्
लाखों की प्यास बुझाती है स्वर्णरेखा और खरकई
पूर्वी सिंहभूम के लाखों लोगों की प्यास बुझाने वाली स्वर्णरेखा और खरकाई नदी गर्मी आते ही सूख जाती है. दोनों नदियां गंदे नाले में तब्दील हो गई है. इससे जमशेदपुर में 340 मिलियन लीटर प्रतिदिन पानी निकाला जा रहा है.
कारो नदी पर सारंडा वन क्षेत्र के लोग हैं निर्भर
सारंडा में बहने वाली कारो नदी को प्रदूषण मुक्त करना जरूरी है. कारों नदी सारंडा वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन का आधार है. नदी प्रदूषित होने से जन समस्या बढ़ती जा रही है. कारो नदी राज्य के सारंडा वन क्षेत्र के लोगों के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोत है.
चाईबासा की जीवन रेखा मानी जाती है रोरो नदी
चाईबासा की जीवन रेखा मानी जाने वाली रोरो नदी का भी अस्तित्व खतरे में है. बरसात के दिनों को छोड़ कर नदी नाले के रूप में बहती है. नदी का अधिकांश हिस्सा जलकुंभी से भर जाता है. चाईबासा फेनेटिक क्लब के सदस्यों द्वारा इसकी सफाई का प्रयास किया जाता है.
अस्तित्व खो रही सरायकेला की संजय नदी
सरायकेला से गुजरने वाली संजय नदी संरक्षण के अभाव में अस्तित्व खोने को विवश हैं. लोगों को जीवन देने वाली ये नदी आज अपनी ही सांसों की मोहताज बनी हुई है. कुछ वर्ष पहले नदियों के संरक्षण को लेकर नदी किनारे पौधरोपण की योजना बनी थी, लेकिन कारगर नही हो पाई. आज बारिश की कमी से नदी अपना अस्तित्व खोने लगी है.
