छठ का तीसरा दिन आज इन उपायों से सफल होगी पूजा मिलेगा आशीर्वाद

ज्योतिष न्यूज़: छठ पर्व के छठे दिन की शुरुआत इस वर्ष 17 नवंबर को होगी जिसका समापन 20 नवंबर को होगा। यह पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है और आज यानी 19 नवंबर को छठ का तीसरा दिन है जो कि खास माना जाता है।

इस दिन शाम के समय देवों को जल से नवाज़ा जाता है माना जाता है कि तीसरे दिन सवेरे सूर्य को जल से नवाज़ा करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है लेकिन इसी के साथ अगर आज सूर्य साधना के समय भगवान की चालीसा का पाठ किया जाए जाए तो जातक को विशेष लाभ होता है और कष्ट दूर हो जाता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री सूर्य चालीसा पाठ।
श्री सूर्य चालीसा—
॥ दोहा॥
कनक बंधन कुंडल मकर, मुक्ता मंगल अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्यायी, शंख चक्र के सङ्ग॥
॥ चौपाई ॥
जय शिव जय जयति दिवाकर,
सहस्त्रांशु सप्तश्व तिमिरहर॥
भानु पतंग मेरीची भास्कर,
शिवानी हंस सुनूर विभाकर॥
विवस्वान आदित्य विकर्तन,
मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि खग रवि कहलाते,
वेद हिरण्यगर्भ कहिए॥ 4
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकि,
मुनिगन होत आकर्षक मोदल्हि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर,
हनकत हय साता चढ़ाई रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी,
तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते,
देखि पुरन्दर लज्जित होते॥8
मित्र मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर,
सूर्य अर्क खग कलिकार॥
पूषा रवि आदित्य नाम ल,
हिरण्यगर्भाय नमः काहिकै॥
द्वादश नाम प्रेम सों गावें,
मस्तक बार बार नवाए॥
चार पदारथ जन सो पावै,
दुःख दारिद्र अघ पुंज नासावै॥12
नमस्कार को चमत्कार यह,
विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई,
अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नामाकरण करते हैं,
सहस जन्म के पातक तरते॥
छठ पूजा 2023 छठ पर करें ये उपाय
उपाख्यान जो करते हैं तवजन,
रिपु सों जमलहते सोरहि छन॥16
धन सुत जुट परिवार बढ़ता है,
प्रबल मोह को फंद कट्टू है॥
आर्क शीशे को रक्षा करना,
रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य उत्सव पर नित्य विराजत,
कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानुसांसा वकरहुनित,
भास्कर करत सदा मुखको हित॥20
बाकी रहन पर्जनिक हमारे,
रसना बीच तीक्ष्ण बस प्रिये॥
कंठ सुवर्ण रेती की शोभा,
तिग्म् तेजसः कंधे लोभा॥
पूषां बहु मित्र पृष्णहिं पर,
त्वष्टा वरुण रहत सुशंकर॥
दोस्त के हाथ पर रक्षा करण,
भानुमान् उरसर्म सुउदर्चन॥24
बसत नाभि आदित्य मनोहर,
कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंगा गोपीपति सविता बासा,
गुप्त दिवाकर करत हुलसा॥
विस्वासन पद की रखवारी,
बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै,
रक्षा कवच विचित्र विचारे॥28
अस जोजन अपने मन माहीं,
भय जग समुद्रतट करहुँ तेहि नाहिं॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कहु न व्यापै,
जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हर्ता,
नव प्रकाश से आनंद भारत॥
ग्रह गन ग्रसि न लाभवत जाही,
कोटि बार मैं प्रणवौं ताहि॥32
मंद सदृश सुत जग में जाके,
धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा,
करत करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों,
दूर हत्तसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी,
हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥36
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन,
मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाखी,
ज्येष्ठ इन्द्रवै आषाढ़ रवि गा॥
यम भादो आश्विन हिमरेता,
कातिक होत दिवाकर नेता॥
अघन भिन्न विष्णु हैं पूषहिं,
पुरुष नाम रविहैं मलमाशिं॥40
॥ दोहा॥
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख उपाय लहि बिबिध, होनहिं सदा कृतकृत्य॥