धोबी का कुत्ता

एक कहावत है धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। वह बेचारा न इधर का होता है न उधर का। उसे बीच वाला कहा जा सकता है। उसकी हालत बीच वाले ही समझ सकते हैं। इन बीच वालों की कई कि़स्में होती हैं। जि़न्दगी के हर शोबे में ये धोबी के कुत्ते की तरह घूमते मिल जाते हैं। भले ही भारत स्वयम् को कल्याणकारी राज्य घोषित करता रहे पर सच तो यह है कि बीच वालों की एक कि़स्म का हाल जानने में सरकार को भी बहुत वक्त लगा। सरकार ने अभी कुछ अरसा पहले ही इन बीच वालों के अधिकारों, उनकी सुरक्षा एवं कल्याण के कई क़दम उठाए हैं। सदियों तक बेचारे ये बीच वाले घर वालों के सामने भी अपनी बात कहने से कतराते रहे। लेकिन ऐसा भी नहीं कि सिर्फ इन्हीं बीच वालों की हालत दयनीय हो। बीच वाले कहीं भी हो सकते हैं। मिसाल के लिए अफसरशाही में भी धोबी के कुत्ते, मेरा मतलब है कि बीच वाले अफसर ही पिसते हैं। ऊपर वालों के ऊपर किसी का बस नहीं चलता। नीचे वालों को कोई पूछता नहीं। सिर्फ बीच वालों की जवाबदेही बनती है। अगर विश्वास नहीं तो भारत सरकार के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों से पूछ कर देख लें। यही हाल घर में बीच वाले बच्चों का होता है। एक पहाड़ी कहावत है, जिसका हिन्दी तर्जुमा कुछ इस तरह हो सकता है ‘बड़ा बाप को प्यारा, छोटा मां को प्यारा, बीच वाले तेरा भगवान सहारा’। इन बेचारों को अपने मन की बात कहने के लिए ऑल इण्डिया रेडियो वालों का सहारा ढूँढऩा पड़ता है।
लेकिन वह सहारा भी किसी युगपुरुष को ही नसीब होता है। नहीं तो मन की बात मन के बीच में ही अटक कर रह जाती है। युगपुरूष होने पर आपको प्रायोजित सवाल करने वाले भी मिल जाते हैं और श्रोता भी। यूँ तो आदमी का व्यक्तित्व कई प्रकार का हो सकता है। कुछ व्यक्ति गंभीर होते हैं तो कुछ हँसमुख। पर इन दोनों के बीच वाली शख्सियतों की कोई ख़ास पूछगछ नहीं होती। गंभीर चेहरा दर्शाने के कई फायदे हैं। ऐसे व्यक्तित्व वाले अपनी मूर्खता को सहजता से पोशीदा बना सकते हैं। उनके चेहरे पर मुस्कान केवल कैमरा देख कर ही आती है और कैमरा हटते ही वे फिर गंभीरता का लबादा ओढ़ लेते हैं। मूर्खतापूर्ण बात कहने या कृत्य के बाद जब ऐसे आदमी पुन: गंभीर हो जाते हैं तो आप उन पर हँस भी नहीं पाते। वहीं दूसरी ओर हँसमुख आदमी कई बातों को यूँ ही हवा में उड़ा देता है। पर उससे भी आदमी असहज नहीं होता। लेकिन बीच वाला आदमी न इस ओर का होता है न उस छोर का। मिसाल के लिए काँग्रेस के चिर युवराज को देख लें। देश चाहे भी तो उन्हें अपनी बागडोर नहीं सौंप सकता।
लेकिन आदमी गांभीर्यता का नक़ाब ओढ़े हो तो दिखे तो मूर्खतापूर्ण बात कहने के बाद भी सहज गंभीर दिख कर अपनी विद्वता को क़ायम रख सकता है। उनसे न कोई नोटबंदी पर प्रश्न पूछता है और न एंटायर पॉलिटिकस साईंस की डिग्री के बारे में बात करता है। यही हाल मध्यमवर्गीय तबके का है। मध्यम वर्ग के संघर्षों, उम्मीदों, ख़ुशियों और सामाजिक दबावों को झेलता यह तबका सारी उम्र अपने मूल्यों और इच्छाओं के बीच झूलता रहता है। उसका सपना एक बड़ा घर, फैंसी कार खरीदने और विदेश घूमने का होता है, लेकिन सीमित आय और ज़रूरी खर्चों की वजह से एक के बाद उसके सपने पीछे छूटते चले जाते हैं। रही-सही कसर सरकार निकाल देती है। सरकार को पता होता होता है कि यही एक वर्ग है जिसकी बालू से पाँच साल में कभी भी तेल निकाला जा सकता है। यह मध्यम वर्ग ही है, जो सरकार के करों का बोझ भी ढोता है और अपनी उम्मीदों और उमंगों का भी। लेकिन सरकार है कि इस बीच वाले वर्ग को पीसने के लिए इनकम टैक्स में राहत देने के नाम पर नई और पुरानी रिजीम के नए-नए जाल बिछाती रहती है।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal


R.O. No.12702/2
DPR ADs

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
रुपाली गांगुली ने करवाया फोटोशूट सुरभि चंदना ने करवाया बोल्ड फोटोशूट मौनी रॉय ने बोल्डनेस का तड़का लगाया चांदनी भगवानानी ने किलर पोज दिए क्रॉप में दिखीं मदालसा शर्मा टॉपलेस होकर दिए बोल्ड पोज जहान्वी कपूर का हॉट लुक नरगिस फाखरी का रॉयल लुक निधि शाह का दिखा ग्लैमर लुक