बचपन में जिसने डराया उसी में दिखा शक्ति का रूप

जमशेदपुर: एक नारी की सबसे बड़ी ताकत उसका महिला होना ही है. यदि वह ठान ले तो बड़ी से बड़ी बाधा को भी पार कर जाए. झारखंड के खूंटी जिले के हेसल गांव की ऐसी ही महिला शक्ति है अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान. बचपन में जिस हॉकी की सख्त गेंद से उन्हें डर लगता था, आज उसी हॉकी स्टिक और गेंद से हॉकी खेल के क्षेत्र में अपनी शक्ति दिखा रही हैं. इसमें वह इतना आगे बढ़ गईं हैं कि झारखंड की पहली महिला हॉकी ओलंपियन बनने का गौरव प्राप्त हुआ.
एक घटना ने संकोच को शक्ति में बदला हेसल गांव के स्कूल में अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी आए हुए थे. उनकी जर्सी पर खिलाड़ियों का नाम और इंडिया लिखा था. यह देख निक्की ने भी उन जैसा बनने की ठान ली. उन्होंने अपनी बड़ी बहन शशि प्रधान की छोड़ी हुई हॉकी स्टिक उठाई और खेल मैदान में उतर गईं. साल 06 में वह राजधानी रांची के बरियातू स्थित एनएसटीसी सेंटर में ट्रायल देने आईं और चुन ली गईं. यहीं से अपनी ‘शक्ति’ पहचानी और पीछे मुड़कर नहीं देखा.
दो साल में सेंटर का हॉस्टल छोड़ना पड़ा. 10 में प्लस टू खत्म हुआ तो यहां से भी निकलना पड़ा. 11 से जीवन बदला, जब सब जूनियर इंडिया टीम में चुनी गईं. उसके बाद भोपाल गईं. वहां भी हॉस्टल की समस्या आई, पर हार नहीं मानी. 12-13 में फिर झारखंड वापसी हुई और सेरसा (रेलवे) ने नौकरी ऑफर की. इसके बाद 15 में ट्रायल में इंडिया कैंप में चुनी गई और फिर पीछे नहीं देखा.

● 16 से लगातार भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व
● अंडर-21 एशिया कप में रजत पदक और राष्ट्रमंडल खेल 22 में कांस्य पदक
अंतरराष्ट्रीय हॉकी में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करती हैं. ओलंपिक मेडल का लक्ष्य लेकर निक्की अब आगे की तैयारी में जुटी हुई है. झारखंड से अब तक 159 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने वाली निक्की दक्षिण-पूर्व रेलवे ओएसडी हैे.