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अतुल्य चौबे :
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छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद प्रदेश कांग्रेस की अंदर की परतें खुलनी शुरू हो गई हैं। चुनाव से पहले कांग्रेस जितनी मजबूत दिखाई दे रही थी, दरअसल वह कुछ चंद शक्तिशाली नेताओ द्वारा तैयार किए गए ऊपरी आवरण थे जिसकी परतें अब चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद उघडऩे लगी हैं। इससे पता चलता है कि सरकार और संगठन पर कुछ लोगों का नियंत्रण होने के आरोप गलत नहीं थे। सरकार और संगठन पर एक व्यक्ति का ही संपूर्ण नियंत्रण था उनका फैसला ही सर्वोपरि था जिसपर सबको हां में हां मिलाना होता था। केन्द्रीय नेता और हाईकमान भी उनके नियंत्रण में थे क्योंकि उनकी भी डिमांड पूरी हो रही थी। जैसा कि विपक्ष छत्तीसगढ़ सरकार पर कांग्रेस का एटीएम होने का आरोप लगा रही थी। ये बातें कांग्रेस के उन नेताओं के बयानों से साबित हो रही हैं जिन्हें पार्टी से निष्कासित किया गया है और नोटिस जारी किया गया है।
इन नेताओं के साथ टिकट से वंचित रहे डेढ़ दर्जन नेताओं ने अपनी बात हाईकमान तक पहुंचाने दिल्ली दौड़ लगाई है। इन नेताओं के हवाले से यह बात सामने आई है कि एआईसीसी ने छत्तीसगढ़ में विधायकों के परफार्मेंस जांचने कोई सर्वे ही नहीं कराई जबकि उसी सर्वे को आधार बनाकर लगभग 22 विधायकों की टिकट काट दी गई थी। इन नेताओं से मुलाकात में पार्टी के वरिष्ठ नेता ने यह बात कही कि उस प्रभावशाली व्यक्ति ने ही सर्वे रुकवा दी थी। इन बातों से यह पता चलता है कि प्रदेश कांग्रेस में आंतरिक गुटबाजी चरम पर थी हालाकि सत्ता में होने के चलते यह खुलकर सामने नहीं आ रही थी। सत्ता के चलते ही सारे मंत्री-विधायक उस व्यक्ति के प्रभाव और नियंत्रण में थे और उनकी मुखालफत करने से बचते रहे लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद उन्हें अपनी भड़ास निकालने का अवसर मिल गया है। यही कारण है कि अब सरकार में मंत्री रहे और टिकट से वंचित नेता खुलकर अपनी बात कह रहे हैं। एक नेता ने तो यहां तक कहा है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में दलाल और वामपंथियों का कब्जा हो गया है।
इस नेता ने प्रदेश प्रभारी और पीसीसी अध्यक्ष को लिखे पत्र में कांग्रेस के नेताओं पर कई चौंकाने वाले आरोप लगाए हैं। इस नेता ने हार की समीक्षा और नेता प्रतिपक्ष के चयन पर भी सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि इस हार के लिये जो प्रत्यक्ष तौर पर जवाबदार थे, उनकी लीपा-पोती आप लोगों ने दिल्ली में कर ली. नेता प्रतिपक्ष के चयन की औपचारिकता भी आप लोगों ने कर लिया, 75 पार की बातें करते-करते हम 35 में क्यों सिमट गए। इसकी समीक्षा आज 15 दिनों बाद भी करने की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है। इस नेता ने चुनाव की योजनाओं और प्लानिंग फेल होने के साथ सर्वे असफल होने पर भी सवाल उठाए। उसने आरोप लगाया कि दिल्ली के नेताओं का छत्तीसगढ़ राजनीतिक पर्यटन हब, मौज-मस्ती का केन्द्र बन गया है. एक-एक प्रकोष्ठ में 4-4 प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए, पैसे लेकर नियुक्तियां की गईं। जिस कांग्रेस को कार्यकर्ताओं ने संघर्ष कर मुश्किलों से ऊबार कर सत्ता तक पहुंचाया उन्हें उपेक्षित कर बारही लोगों को बुला-बुलाकर उपकृत कर, राजनीतिक और शासकीय पदों से सम्मानित किया गया। नि:संदेह ये आरोप गंभीर हैं और कांग्रेस को इस पर मंथन करना चाहिए।