अलर्ट जवानी का आलस कहीं बुढ़ापे में भुलक्कड़ न बना दे

उत्तरप्रदेश | जवानी में नशाखोरी के साथ शारीरिक श्रम में शिथिलता बुढ़ापे में भूलने की बीमारी का वजह बन रही है. शुरुआती दिनों में अनदेखी गंभीर बीमारी का रूप धारण कर ले रही है. 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में भूलने की शिकायत दिनोंदिन बढ़ रही है. जो अपने बेटे, बहू, नाती-पोते की पहचान नहीं कर पा रहे हैं. बुजुर्गों की इस समस्या को डॉक्टर गंभीर बीमारी वैस्कुलर डिमेंशिया और अल्जाइमर डिमेंशिया मान रहे हैं. उनका कहना है कि समय से इलाज नहीं कराने से कई बार इन बीमारियों के गंभीर अवस्था में पहुंचने पर बुजुर्ग अपने घर और परिवार की पहचान तक खो दे रहे हैं.
स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में मानसिक रोग विभाग के डॉ अभिनव टंडन के अनुसार वैस्कुलर डिमेंशिया के मरीजों के दिमाग की नसों के कमजोर पड़ने से बुजुर्गों की याददाश्त कमजोर हो जा रही है. दूसरी ओर, अल्जाइमर डिमेंशिया के मरीजों में दिमाग की नस में एमाइलॉइड प्रोटीन के इकह्वा होने की वजह से उनमें भूलने की शिकायत बढ़ रही है. यह दोनों बीमारी युवावस्था में नशे के सेवन, शारीरिक और मानसिक क्रिया कलापों से दूर होने की वजह से उम्र बढ़ने पर हो रही है. अगर किसी परिवार में ऐसे बुजुर्ग हैं जिनकी याददाश्त दिनोंदिन कमजोर पड़ रही है तो उन्हें घर से बाहर अकेले न निकलने दें. क्योंकि कई मामलों में ऐसे बुजुर्ग अपने घर का रास्ता या पहचान भूल जाते हैं.
मंडलीय अस्पताल कॉल्विन स्थित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉ राकेश पासवान बताते हैं कि ओपीडी में हर महीने 100-120 बुजुर्ग दिखाने के लिए आ रहे हैं जिसमें करीब 15-20 लोगों की याददाश्त कमजोर होती है. कई बुजुर्ग ऐसे हैं जो राह चलते-चलते अपने घर का पता भूल जा रहे हैं तो कई अपना नाम, पहचान तक बता पाने में अक्षम हो जा रहे हैं. डॉ पासवान ने बताया कि वैस्कुलर और अल्जाइमर डिमेंशिया से बचाव के लिए लक्षण दिखते ही रोगी को डॉक्टर के यहां दिखाना जरूरी है. ऐसे मरीजों के लिए योगाभ्यास तथा दिमागी कसरत काफी कारगर साबित हो रहा है.
