शिकारवाड़ी की पहाड़ियों पर बेरोकटोक चल रहे बुलडोजर

उदयपुर। उदयपुर शहर के बिल्कुल निकट शिकारवाड़ी में अभी भी भूमाफिया पहाड़ी को छलनी करने से बाज नहीं आ रहे, वे लगातार वहां बुलडोजर से पहाड़ी को छलनी कर रहे हैं। पूर्व में एक बार यहां काम चलने को लेकर अधिकारियों ने काम रुकवाया, लेकिन दीपावली के बाद वापस काम शुरू हो गया। अधिकारी चुनावी व्यस्तता के साथ ही दूसरी ओर यह जगह वन विभाग का हिस्सा बता रहे हैं। उनका कहना है कि यह हिस्सा गोवर्द्धनविलास बांकीखंड का हिस्सा है। जिसे भूमाफिया ने मिलीभगत कर खुर्दबुर्द कर दिया। इसके बारे में वन अधिकारी जानकर भी अनजान हैं। रेकॉर्ड में इसकी जांच की जाए तो गोवर्धनविलास गांव में गायब वनविभाग की अधिकांश जमीन यहीं निकल आएगी।

गत दिनों ‘अब शिकारवाड़ी में दिनदहाड़े पहाड़ों पर चल रहे बुलडोजर, कोई रोकने टोकने वाला नहीं’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। खबर के बाद यूडीए की टीम ने मौके पर पहुंचकर एक बार काम रुकवाया दिया, लेकिन दीपावली के बाद दोगुनी रफ्तार से काम शुरू हो गया। क्षेत्रवासियों ने बताया कि भू व्यवसायी यहां भूखंडों की प्लानिंग के लिए पहाडों को काटने के साथ वनविभाग की जमीन को भी खुर्दबुर्द कर रहे हैं, लेकिन कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में लगातार पहाडिय़ां छलनी हो चुकी हैं। अभी वहां भूमाफिया दिन रात काम चलाते हुए बुलडोजर के साथ ही ब्लास्िटिग कर रहे हैं। जागरूक नागरिक लगातार क्षेत्र में छलनी होती पहाडिय़ों के फोटो व वीडियो भिजवा रहे हैं।
समिति को नजर नहीं आई कटाई संभागीय आयुक्त के निर्देश व जिला कलक्टर के आदेश पर यूडीए सचिव ने सर्वे कर पहाड़ों पर निगरानी के लिए जोन वाइज तीन कमेटियां बनाई थी। जिन्हें अपने-अपने इलाकों में पहाड़ों पर काम रोकने व कार्रवाई कर प्रतिदिन रिपोर्ट देने के आदेश दिए गए। इन टीमों ने सर्वे रिपोर्ट बनाई, लेकिन शहर से निकटतम वाली शिकारवाड़ी वाली जगह उन्हें नजर नहीं आ रही।हाइकोर्ट की सख्ती व खबरों के बाद संभागीय आयुक्त ने निर्माण कार्यों पर रोक लगाई थी, लेकिन अब तक पहाड़ी छलनी करने वालों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाया गया। पुरानी स्वीकृतियों की आड़ में प्रशासनिक रोक के बावजूद पहाडिय़ों को छलनी कर रहे हैं। जब तक भूमाफिया पर मुकदमे, चालान व निर्माण स्वीकृतियां निरस्त जैसी कार्रवाई नहीं होगी पहाडिय़ां नहीं बच सकेगी। अब तक प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदारों से भी नहीं पूछ रहे कि उनके क्षेत्र में ये पहाडिय़ां कैसे कट रही है। इनकी स्वीकृतियां क्यों नहीं निरस्त की जा रही है।