सम्पादकीय

अभी गोल्ड बॉन्ड से आस न छोड़ें

आठ साल पहले केंद्र सरकार ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड जारी किया था. तब से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इन बॉन्ड को कुछ महीनों के अंतराल पर बेचा गया है. अब तक 62 बार इनकी बिक्री की गयी है. हर बॉन्ड आठ साल के लिए जारी किया जाता है, तो पहले चरण के बॉन्ड की अवधि पूरी हो रही है. उन्हें नगद राशि के लिए बदलना होगा. सरकार बॉन्ड की वापसी को मंजूर करेगी और उसके एवज में निवेशक के खाते में नगदी जमा करेगी. इस योजना के तहत एक निवेशक न्यूनतम एक ग्राम से लेकर अधिकतम चार किलोग्राम सोने के मूल्य के बराबर बॉन्ड खरीद सकता है. गोल्ड बॉन्ड की अनेक विशेषताएं हैं.

ये डीमैट के रूप में होते हैं, इसलिए किसी तरह के कागजी दस्तावेज रखने की जरूरत नहीं होती है, जैसा पहले किसान विकास पत्र जैसे निवेशों में होता था. बॉन्ड की दूसरी खासियत यह है कि यह वास्तविक सोने की इकाई का प्रतिनिधित्व करता है. इस तरह यह सोना खरीदने जैसा ही है, बस उसका रूप डीमैट होता है. इसका मतलब यह है कि जब आप बॉन्ड को भुनाते हैं, तो असली सोना बेचने जैसा ही है. सोने की कीमतों में उछाल का लाभ आपको मिलता है. सोने का भाव दो कारणों से बढ़ता है. जब अंतरराष्ट्रीय कारोबारी और निवेशक सुरक्षित संपत्ति के रूप में बड़ी मात्रा में सोना खरीदने लगते हैं, तब सोना महंगा होने लगता है. भारत में रुपये और डॉलर की विनिमय दर में कमी से भी सोना महंगा हो सकता है. गोल्ड बॉन्ड का तीसरा फायदा यह है कि इसे गिरवी रखकर कर्ज लिया जा सकता है. इसकी चौथी खासियत है कि इसे भुनाने से जो पूंजी लाभ होता है, उस पर टैक्स से छूट है. गोल्ड बॉन्ड का पांचवा फायदा है कि निवेशक को सोने की बढ़ी कीमत तो मिलती ही है, साथ ही सरकार ऊपर से ढाई फीसदी ब्याज भी देती है.

जब पहले चरण के निवेशक अपने बॉन्ड को भुनायेंगे, तो उन्हें आठ साल में प्रति वर्ष 12 फीसदी से अधिक की दर से लाभ होगा. इसकी वजह यह है कि इस अवधि में सोने का भाव दुगुने से भी अधिक हो गया है. नवंबर 2015 में एक ग्राम सोने का भाव 2,684 रुपये था, जो अब लगभग छह हजार रुपये हो चुका है. इसके अलावा रुपये और डॉलर का विनिमय दर 33 फीसदी की गिरावट के साथ 62 से 82 रुपये हो चुका है. इस प्रकार निवेशक को आठ साल में 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से लाभ हुआ है.

इस अवधि में शेयर बाजार का रिटर्न 13.8 प्रतिशत प्रति वर्ष रहा है. ध्यान देने की बात यह है कि सोने पर लाभ में कोई जोखिम नहीं होता और शेयर बाजार लगातार बढ़त पर है, फिर भी सोने में अच्छा-खासा फायदा हुआ है. यह लेख निवेश की सलाह के बारे में नहीं है. डीमैट गोल्ड बॉन्ड की बिक्री से सरकार को आशा थी कि लोगों की सोना रखने की कभी न खत्म होने वाली भूख कम होगी. हर साल भारत लगभग एक हजार टन सोना आयात करता है, जिसमें औसतन 50 से 80 अरब डॉलर की कीमती विदेशी मुद्रा बाहर चली जाती है. सरकार ने सोने पर 12.5 फीसदी का कड़ा आयात शुल्क लगाया है. पर दुर्भाग्य से, न तो गोल्ड बॉन्ड योजना से और न ही कड़े आयात शुल्क से सोने के आयात पर कोई असर पड़ा है.

यह सही है कि 2022-23 में 2021-22 की तुलना में सोना आयात में 24 फीसदी की गिरावट आयी है और बाहर जाने वाली राशि 40 अरब डॉलर के आसपास है, जो पहले से कम है. फिर भी सोना आयात से विदेशी मुद्रा देश के बाहर जाती है और यह व्यापार घाटा वाले देश के लिए बुरी खबर है. डॉलर के निर्यात से देश में आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लाभ भी कम हो जाता है. निवेशकों को काफी आकर्षक शर्तों पर गोल्ड बॉन्ड बेचकर सरकार कम से कम कुछ निवेशकों को भौतिक सोने से दूर करने की उम्मीद कर रही थी. अब तक बॉन्ड के हिसाब से सोने का स्टॉक लगभग 110 टन है, जो हमारे वार्षिक आयात का सिर्फ दसवां हिस्सा है. बॉन्ड की बिक्री से सरकार की कुल उधारी लगभग 64,000 करोड़ रुपये है. लेकिन इस उधार की लागत प्रति वर्ष 10 प्रतिशत से अधिक रही है, जो सरकार द्वारा राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए उधार लेने पर चुकायी जाने वाली लागत से बहुत अधिक है. साल 2008 से 2020 के बीच की अधिकांश अवधि के दौरान पश्चिमी देश अपने संप्रभु ऋण पर एक प्रतिशत की लागत का भुगतान करते थे, जबकि भारत लगभग छह प्रतिशत का भुगतान करता था. अब मुद्रास्फीति और मौद्रिक सख्ती के कारण संप्रभु ऋण जुटाने की लागत बढ़ गयी है, लेकिन यह अभी भी गोल्ड बॉन्ड बेचने की लागत से काफी कम है.

यही वजह है कि सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम को बंद करने की मांग उठ रही है. यह बहुत महंगा है और इसने भौतिक सोने की अतृप्त भूख पर कोई असर नहीं डाला है. लेकिन ऐसा करना जल्दबाजी होगी. इस योजना को अधिक आक्रामक तरीके से बेचने की जरूरत है, खासकर भीतरी इलाकों में छोटे खुदरा निवेशकों को. चार किलो के बजाय दो किलो की अधिकतम सीमा रखी जा सकती है. बिक्री को बैंकों और रिजर्व बैंक के बजाय स्मार्टफोन आधारित एप के माध्यम से किया जा सकता है. बॉन्ड को स्वतंत्र रूप से व्यापार योग्य बनाया जा सकता है और डीमैट सोने के लाभों के अधिक प्रचार की आवश्यकता है.

कल्पना कीजिए कि अमिताभ बच्चन जैसे ब्रांड एंबेसडर केवल कल्याण ज्वैलर्स के उत्पादों के बजाय सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड बेच रहे हों. स्वर्ण समर्थित एक्सचेंज ट्रेडेड फंड के साथ-साथ बॉन्ड भी रह सकते हैं. सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत में वृद्धि और अस्थिरता के बरक्स इस व्यवस्था से उधार लेने की लागत कम कर सकती है. इस प्रकार इस डेरिवेटिव के उपयोग से लागत कम से कम एक या दो प्रतिशत कम हो सकती है. इसके लिए वित्त मंत्रालय में कुछ स्मार्ट वित्तीय विशेषज्ञता की आवश्यकता है, जो संभव है. भौतिक सोने पर गोल्ड बॉन्ड का प्रभाव उतार-चढ़ाव के साथ होगा. सरकार को बिना किसी दबाव के या सोने के स्वामित्व पर प्रतिबंध लगाये बिना, जो निश्चित रूप से भारत में अकल्पनीय है, लाखों घरों में पड़े सोने को उपयोग में लाने के लिए सक्रियता से योजनाएं शुरू करनी चाहिए. यह स्वर्ण जमा योजना गोल्ड बॉन्ड योजना के साथ सह-अस्तित्व में रह सकती है, और धीरे-धीरे, लेकिन निश्चित रूप से सोने की संपत्ति को औपचारिक वित्तीय क्षेत्र में लाने में मदद कर सकती है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

By अजीत रानाडे


R.O. No.12702/2
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