सम्पादकीय

सेल्फी से मौतें : खुद ही बेमौत मर रहे लोग

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पर्यटक सेल्फी लेते समय असमय ही काल के गाल में समाते जा रहे हैं। देश में समय-समय पर ऐसे हादसे होते रहते हैं, मगर सबक न सीखना लोगों की आदत बन गई है। कभी रेल से लटकते समय, कभी पटरियों पर सेल्फी ली जाती है, तो कभी बहते पानी में ली जाती है। चट्टानों पर खड़े होकर भी सेल्फी ली जा रही है। पहाडिय़ों पर चढक़र पांव फिसल रहे हैं। सेल्फी जानलेवा साबित हो रही है। सेल्फी की यह खतरनाक प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। ताजा घटनाक्रम में झारखंड के देवधर में सेल्फी के चक्कर में बैराज में कार गिरने से एक ही परिवार के पांच लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। विजय दशमी के मौके पर चलती कार में स्टेयरिंग थाम लिया और सेल्फी लेने लगा। सेल्फी लेने के चक्कर में कार अनियंत्रित हो गई और पुल की रेलिंग तोड़ते हुए बैराज में गिर गई। कुछ वर्ष पहले गुरुग्राम में सेल्फी लेते समय चार युवकों की दर्दनाक मौत हो गई थी। यह चलती रेल के सामने सेल्फी लेना चाहते थे कि बेमौत मारे गए। देश में यह कोई पहला हादसा नहीं है। हर रोज सेल्फी की वारदातें हो रही हैं। जरा सी असावधानी से सेल्फी घातक सिद्ध हो रही है। देश में सेल्फी के हर रोज ऐसे दर्दनाक हादसों से आत्मा सिहर उठती है कि कुछ लोग जान-बूझकर मौत के आगोश में समाते जा रहे हैं। नदियों के किनारे लोग डूब रहे हैं। खुद ही मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं। सेल्फी के कारण परिवार के परिवार तबाह हो रहे हैं। केन्द्र सरकार को ऐसे मामलों पर संज्ञान लेना होगा। देश के युवा सेल्फी लेते समय इतने अंधे कैसे हो जाते हैं कि अपनी जान जोखिम में खुद डाल देते हैं और असमय ही बेमौत मारे जा रहे हैं। ऐसी त्रासदियां असमय ही घर के चिरागों को बुझा रही हैं। अगर इन मामलों पर संज्ञान लिया जाए, तो यह प्रवृत्ति रुक सकती है।

प्रशासन को इन संगीन मामलों में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। सेल्फी के लापरवाही के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। कैसी विडंबना है कि लोग खुद की घोर लापरवाहियों के कारण बेमौत मर रहे हैं। लाशों के अंबार लग रहे हैं। बेखौफ होकर लोग जोखिम ले रहे हैं। पर्यटकों पर ‘हम नहीं सुधरेंगे’ का लेबल लगा हुआ है। यह कहावत बिगड़ैल पर्यटकों पर सटीक बैठती है कि इतने हादसों के बाद भी समझ नहीं आ रही है। 2020 व 2022 में भी काफी हादसे हुए हैं। 2023 में भी यह संख्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडू में चलती रेल के सामने सेल्फी लेते समय मौत हो गई थी। 19 जून 2021 को फिरोजाबाद में एक दिव्यांग सेल्फी लेते समय पटरी पर गिर गया, तब उसका दोस्त उसे बचाने आया और एकदम से रेल आ गई और दोनों की दर्दनाक मौत हो गई। 16 अक्तूबर 2019 को कुल्लू की धार्मिक नगरी मणिकर्ण में पार्वती नदी के किनारे सेल्फी ले रही दो पर्यटक युवतियां अचानक नदी में बह गई थीं। एक को निकाल लिया गया था, जबकि दूसरी बह गई। सेल्फी लेते समय पांव फिसलने से यह हादसा पेश आया था। ये युवतियां नदी किनारे एक पत्थर पर सेल्फी ले रही थी। ये युवतियां असम व दार्जिलिंग की रहने वाली थी। पर्यटक मनमानी करते हैं। 6 अक्तूबर 2019 को एक मामला तमिलनाडू के मरमपटी के पांबारु बांध में घटित हुआ था जहां सेल्फी लेते समय एक ही परिवार के चार लोगों की पांबारु बांध में गिरने से दर्दनाक मौत हो गई थी। एक को बचा लिया गया था। परिवार के सब लोग पानी में बह गए थे। केवल मात्र परिवार का एक सदस्य ही बच पाया था। मृतकों में नवविवाहित युगल व उनके सगे संबंधी थे।

देश में 2017 में 98 लोग सेल्फी लेते समय मारे गए। 2011 से 2018 तक 259 लोग मारे गए थे। विदेशी पर्यटकों की मौतें ज्यादा हो रही हैं। कुल्लू-मनाली में सैंकड़ों ऐसे मामले घटित हो चुके हैं। उसके बाद भी इन हादसों में कमी नहीं आ रही है। वर्ष 2018 में भी एक ऐसी ही घटना कुल्लू में घटित हुई थी। मणिकर्ण घाटी में पार्वती नदी के किनारे दिल्ली का एक पर्यटक सेल्फी लेते समय नदी में गिर गया था और पानी के तेज बहाव में बह गया था। उसकी लाश नहीं मिल पाई थी। समझ नहीं आता कि लोग पिछले घटित हादसों से सबक क्यों नहीं लेते। गत वर्ष भी हिमाचल प्रदेश में सेल्फी के चक्कर में एक छात्रा को जान से हाथ धोना पड़ा था तथा दूसरी को बचा लिया गया था। ये दोनों छात्राएं शिमला के सुन्नी क्षेत्र में कोलडैम के समीप सेल्फी ले रही थींं कि अचानक एक छात्रा का पांव फिसला और वह डूब गई। दूसरी छात्रा उसे बचाते समय डूबने लगी, मगर बचाव दल के सदस्यों ने उसे बचा लिया था। एक जुलाई 2019 को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में परिवार के साथ पिकनिक पर गए 13 साल के एक बच्चे की सेल्फी के दौरान डैम में गिरने से मौत हो गई थी। बच्चे को बचाने के लिए उसकी मां डैम में कूद गई, मगर जब वह डूबने लगी तो वहां मौजूद लोगों ने उसको बचा लिया, पर उसका बेटा डूब गया।

मध्यप्रदेश में भी झरने के पास सेल्फी ले रहे एक छात्र की डूबने से मौत हो गई थी। गोताखोर जान जोखिम में डालकर लोगों को बचा रहे हैं। सेल्फी के शौकीन खुद तो मर ही रहे हैं, साथ ही दूसरों को भी मार रहे हैं। ऐसे दर्दनाक हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। इसे प्रशासन की लापरवाही की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पिछले महीने चलती ट्रेन के साथ सेल्फी लेने के चक्कर में बंगलुरु के पास तीन युवाओं की दर्दनाक मौत हो गई थी। यह हादसा बंगलुरु से करीब तीस किलोमीटर दूर बिदादी के पास हुआ था जहां तीन लडक़े सेल्फी लेने के चक्कर में चलती ट्रेन की चपेट में आ गए थे और बेमौत मारे गए थे। इनकी उम्र अभी 16 से 18 साल के बीच थी। कुछ लोगों ने इन युवाओं को तस्वीरें खींचते देखा था। इनमें दो युवा कालेज के छात्र थे और एक ने पढ़ाई छोड़ दी थी। कुछ समय पहले वर्धा में नदी में विसर्जन के समय गणेश की मूर्ति के साथ सेल्फी लेने के चक्कर में तीन छात्रों की डूबकर मौत हो गई थी। अब इसे लापरवाही कहेंं या कुछ और, यह अहम सवाल है कि अपनी ही लापरवाहियों के कारण लोग डूबते जा रहे हैं। देश में घटित हो रहे ऐसे हादसों के लिए प्रशासन व पुलिस भी जिम्मेवार हैं। साथ ही लोगों को भी अब बढ़ते हादसों से सीख लेनी होगी, तभी ऐसे हादसों पर लगाम लगाई जा सकती है।

नरेंद्र भारती

स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal


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