बांग्लादेश में आम चुनाव हो सकते है रद्द, विपक्ष कर रहा विरोध

नई दिल्ली। बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के संकेत हैं। पिछले दिनों विपक्षी दलों के प्रदर्शन और ढाका में हिंसा के बीच ताजा घटनाक्रम में देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया है। देश के विपक्षी राजनीतिक दल- बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने 7 जनवरी के आम चुनाव को रद्द करने की मांग की है। गुरुवार को 48 घंटे की देशव्यापी हड़ताल का आह्वान कर बीएनपी ने दावा किया कि इसका मकसद प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्तारूढ़ अवामी लीग सरकार को सत्ता में लाना है। बता दें कि जीत हासिल करने के बाद शेख हसीना सीधे चौथा कार्यकाल हासिल करने की दहलीज पर हैं।

बीएनपी की घोषणा मुख्य चुनाव आयुक्त काजी हबीबुल अवल के उस बयान के एक दिन बाद आई है। इसमें कहा गया कि बहुप्रतीक्षित आम चुनाव 7 जनवरी को होंगे। चुनाव आयुक्त के बयान के बाद बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त महासचिव रुहुल कबीर रिज़वी ने रविवार सुबह 6 बजे से दो दिवसीय आम हड़ताल का आह्वान किया। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली पार्टी ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा को खारिज कर दिया है। बीएनपी ने चुनाव प्रक्रिया जारी रखने के सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध जारी रखने की कसम खाई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता अब्दुल मोईन खान ने कहा, “बांग्लादेश में हर कोई इस चुनाव के नतीजे जानता है।”

धुर दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी सहित कई बीएनपी सहयोगियों ने हड़ताल के आह्वान को समर्थन दिया है। इससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों को देशव्यापी सुरक्षा चौकसी बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। बांग्लादेश के राजमार्गों और प्रमुख शहरों की सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों को भी बुलाना पड़ा। विपक्षी नेताओं ने बीते लगभग 18-20 दिनों से बंद आहूत कर रखा है। इसके कारण बीते 28 अक्तूबर से रुक-रुक कर राष्ट्रव्यापी परिवहन नाकाबंदी हो रही है। आपूर्ति प्रणालियों को बाधित करने वाले राजनीतिक दल चुनाव कराने के लिए एक तटस्थ सरकार बनाने की मांग कर रहे हैं। विरोध कर रहे लोग प्रधानमंत्री हसीना का इस्तीफा भी मांग रहे हैं।

इसी बीच मुख्य चुनाव आयुक्त अवल ने बुधवार को कहा कि सुचारू चुनाव के लिए सौहार्दपूर्ण माहौल जरूरी है। हालांकि, “मतदान की संस्थागत पद्धति समेत कई मुद्दों पर राजनीतिक नेतृत्व के बीच मतभेद थे। ऐसे में लंबे समय से चुनाव कराए जाने की बातें हो रही हैं। अब अगले साल चुनाव कराने की तैयारियां की जा रही हैं। बीएनपी और उसके सहयोगियों का नाम लिए बिना बांग्लादेश के चुनाव आयुक्त अवल ने कहा कि उनके कार्यालय में सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को आयोग के साथ बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया। उन दलों को भी बुलाया गया जो आगामी चुनावों में भाग लेना नहीं चाहते। उन्होंने निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया।

बांग्लादेश के सीईसी ने कहा, “बहुदलीय लोकतंत्र में मतभेद होने की संभावना हो सकती है, लेकिन अगर मतभेदों के कारण झड़प और हिंसा होती है जो चुनाव प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, तो सर्वसम्मति और समाधान जरूरी है।” 48 घंटों की हड़ताल के आह्वान के बीच चुनाव आयोग के प्रमुख ने सभी राजनीतिक दलों से “संघर्ष और हिंसा” का रास्ता छोड़ने और “समाधान तलाशने” की अपील की। उन्होंने कहा कि आयोग हमेशा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों की सहज भागीदारी और प्रतियोगिता का स्वागत करेगा। इसी बीच सत्तारूढ़ अवामी लीग ने चुनाव कार्यक्रम का स्वागत किया है। पार्टी महासचिव ओबैदुल कादिर ने कहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग को सभी आवश्यक समर्थन देगी। कादर ने कहा, “हमारा मानना है कि चुनाव में भाग लेने का समय अभी खत्म नहीं हुआ है। बीएनपी की चुनावी भागीदारी का स्वागत किया जाएगा।”

हालांकि, बीएनपी ने बार-बार कहा है कि मौजूदा सरकार के तहत कोई भी चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकता। अवामी लीग ने इसे सिरे से खारिज कर कहा कि संविधान के अनुरूप मौजूदा प्रधानमंत्री हसीना के पद पर रहते ही चुनाव कराए जाएंगे। बता दें कि बीएनपी ने 2014 में भी चुनाव का बहिष्कार किया था। हालांकि, 2018 के चुनावों में इस दल ने भाग लिया। बाद में पार्टी के नेताओं ने इस फैसले को एक गलती बताया। मतदान में बड़े पैमाने पर धांधली और धमकी के आरोप भी लगाए। अमेरिका और अन्य प्रमुख पश्चिमी देशों ने समावेशी और विश्वसनीय चुनाव सुनिश्चित करने के लिए बांग्लादेश के सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच बातचीत का आह्वान किया है। बता दें कि बांग्लादेश एक संसदीय लोकतंत्र है, जहां विशेषकर चुनावों से पहले और चुनाव के दौरान हिंसा का इतिहास रहा है। पिछले दो सप्ताह में हुई राजनीतिक हिंसा में एक पुलिसकर्मी समेत कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई। विरोध प्रदर्शन के दौरान 200 से अधिक लोग घायल हो गए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देशव्यापी कार्रवाई में बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर समेत करीब 8,000 विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है।


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