कम लागत में कोसा निर्माण कर कमाया जा सकता है अधिक मुनाफा

राजिम। माघी पुन्नी मेला में शासकीय स्टॉलों के द्वारा योजनाओं की जानकारी मेला में मेलार्थियों को स्टॉल में उपस्थित अधिकारी व कर्मचारियों के द्वारा जानकारी दी जा रही है। ग्रामोद्योग संचानालय रेशम विभाग स्टॉल में उपस्थित किरवई से आए सूरजभान साहू ने बताया कि कोसे से धागा निकालने के लिए तितली के द्वारा अंडा प्राप्त होते है, उस अंडे से ईल्ली निकलने में 9 दिन लगते है। उस ईल्ली को कहुआ और शहतूत के ठंडल लेकर ईल्ली के पास ले जाया जाता है और ईल्ली उस डंठल में आते है। डंठल को ले जाकर कहुआ और शहतूत के पेड़ में ईल्ली को डाल देते है। ईल्ली पत्ते को खाकर लार छोड़ते-छोड़ते कोसे का निर्माण करते है।
ईल्ली का आकार भी छोटा होता जाता है और वह ईल्ली अपने बनाये कोसे के अंदर ही होते है। कोसा उत्पादक कहुआ पेड़ में फल के समान दिखने वाले कोसे को कांट लेते है और कोसे के ऊपर हिस्से को कांटते है उसके अंदर ईल्ली जो है तितली बन चुका रहता है। उसे पकड़ कर उसके पंख कांट कोसा पालन करने वाला उससे फिर से अंडा प्राप्त करता है। प्राप्त हुए कोसे को निरमा, माटी राख, खाने का सोडा से दो से ढाई घंटा उबाला जाता है, फिर उसे धोया जाता है। उसके बाद धागा निकाला जाता है। सरकार को 1 किलो धागा बेचने पर कोसा पालक को 1 हजार रूपये मिलता है। ये कोसा की साड़ी बाजार में 3-7 हजार तक बिकती है जो हमारे छत्तीसगढ़ की परंपरा बनीं हुई है। छत्तीसगढ़ी गीत कोसा के साड़ी पहिनाहु तोला ओ… गीत ने कोसा साड़ी का महत्व को और बढ़ा दिया है।


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