असिस्टेंट कमिश्नर के कारनामों का पर्दाफाश, जानिए क्या है पूरा मामला

आगरा। राज्य कर विभाग में तैनात असिस्टेंट कमिश्नर के कारनामों का पर्दाफाश हुआ है। उसके कार्यालय में बैठने वाला निजी कर्मचारी मनीष कुमार व्यापारियों से उगाही करता था। 5 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए एंटी करप्शन की टीम ने शुक्रवार को उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। असिस्टेंट कमिश्नर कारोबारियों से कहता था कि मनीष को पैसा दे दो मैं तुम्हारा काम कर दूंगा। वसूली की रकम से मनीष को 500 या हजार रुपये मिलते थे। वह तीन साल से उसके दफ्तर में बैठकर सरकारी और निजी दोनों कार्य करता था। एंटी करप्शन ने असिस्टेंट कमिश्नर को आरोपी बनाया है। जल्द ही उस पर शिकंजा कसा जाएगा।

शमसाबाद रोड कहरई के रहने वाले अमरचंद शर्मा का जीएसटी नंबर कैंसिल हो गया था। उसे दोबारा से लेने के लिए उन्होंने अपने अधिवक्ता के माध्यम से रिवोकेशन फाइल किया था, लेकिन उसे जीएसटी नंबर नहीं मिल पा रहा था। उसकी समस्या का समाधान जीएसटी कार्यालय के खंड 18 में तैनात प्रवेश कुमार द्वारा होना था। मगर वे उसका काम नहीं कर रहे थे। जब भी वह उसके कार्यालय में जाते तो असिस्टेंट कमिश्नर उससे मनीष कुमार से मिलने के लिए कहता था। मनीष, प्रवेश कुमार के कार्यालय में काम करता था। वह एक निजी कर्मचारी था। वह कार्यालय में कंप्यूटर पर बैठकर सरकारी और निजी दोनों कार्य करता था। अमरचंद शर्मा ने 5 हजार की रिश्वत मांगी गई। रिश्वत की रकम लेते हुए मनीष को एंटी करप्शन की टीम ने दबोच लिया।
एंटी करप्शन इंस्पेक्टर संजय यादव ने बताया कि मनीष असिस्टेंट कमिश्नर के कहने पर लोगों से वसूली करता था। रिश्वत की रकम मनीष असिस्टेंट कमिश्नर की पत्नी को या रिश्तेदारों के खातों में ऑनलाइन ट्रांसफर करता था। उन्होंने मनीष के कमरे से लैपटॉप, मोबाइल समेत अन्य दस्तावेज जब्त किए हैं। कार्रवाई में असिस्टेंट कमिश्नर को आरोपी बनाया है जल्द ही उस पर शिकंजा कसा जाएगा।
जयपुर हाउस स्थित राज्य कर कार्यालय (जीएसटी) में 20 खंड हैं। अधिकारियों ने अपने कार्यालयों में निजी कर्मचारियों को तैनात कर लिया है। जबकि उनके सरकारी स्टैनो किसी और दफ्तर में बैठते हैं, लेकिन निजी कर्मचारियों को अपने कार्यालय में कंप्यूटर पर बैठाया जाता है। 3 दर्जन से अधिक निजी कर्मचारी तैनात हैं। ये कर्मचारी शासन से मिलने वाली आईडी पासवर्ड का उपयोग भी करते हैं। विभाग में रिश्वत का खुला खेल चलता है। व्यापारियों पर दवाब बनाने के लिए निजी कर्मचारियों का उपयोग किया जाता है। कई बड़े उद्यमियों से तो महीनेदारी बंधी हुई है।