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सारंगढ़ बिलाईगढ़। कलेक्टर डॉ फरिहा आलम सिद्दीकी के निर्देशन में सीएमएचओ डॉ एफ आर निराला द्वारा सिकलसेल और एनीमिया जांच को जिले में अभियान के रूप में चलाया जा रहा है। डॉ निराला ने जिले के सभी नागरिकों को कहा है कि खून की कमी महसूस होने पर सिकलसेल की जांच कराएं। जिले में सिकलसेल एनीमिया उन्मूलन कार्यक्रम की स्थिति हमारे प्रदेश के साथ जिले में भी सिकलसेल एनीमिया से ग्रसित मरीजों की संख्या है। यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। आम तौर पर इसका प्रभाव दर 6 से 10 प्रतिशत होता है। लोग सिकल सेल की एएस याने वाहक (कैरियर) के रूप में मिलते है, जबकि बीमारी के रूप में 0.5 से 1 प्रतिशत लोग है। छत्तीसगढ के कई जाति में इसका प्रभाव ज्यादा है। सामान्यतः खून के आरबीसी की रंग लाल होती है, जो हीमोब्लोबिन के कारण होता है। जितना ज्यादा हीमोग्लोबिन होता है उतना ज्यादा रक्त लाल रंग हीमोग्लोबिन ही है, जो रक्त से ऑक्सीजन को ग्रहण करता है और कोशिकाओं तक पहुंचता है। आरबीसी की आकृति सामान्यतः सेव फल के आकृति का होता है। इसी कारण ऑक्सीजन छोटी – छोटी ब्लड वेसल्स के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों तक आसानी से पहुंचती है, लेकिन सिकलसेल की बीमारी में इसी आरबीसी की आकृति जो सेव फल जैसी होती है, बदलाव हो जाता है और यह सिकल याने हंसिए की आकृति की हो जाती है जिससे आरबीसी की रक्त वाहिनियों में संचरण प्रभावित होता है। हंसिए के आकार होने के कारण आरबीसी संचरण नही हो पाता।
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परिणाम कोशिकाओं तक ऑक्सीजन कम पहुंचता है, जिस जगह पर दर्द होता है। उस जगह पर रक्त वाहिनियों में आरबीसी उलझ जाता है। ऐसे व्यक्तियों में जो सामान्य समस्या होती है दर्द होना,थकावट होना, चक्कर आना, सांस फूलना, कमजोरी महसूस करना, शरीर पीला दिखना होता है। सामान्यतः आरबीसी बनता है। लगभग 4 माह जिंदा रहता है, लेकिन सिकलसेल हो जाने पर आरबीसी की आयु कम हो जाता है। यही कारण है सिकलसेल एनीमिया के मरीज को बार बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। सिकलसेल के मरीज जो एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होता है।आइए देखते है कैसे ट्रांसफर होता है, जिनके माध्यम से सिकलसेल इसकी 5 अवस्थाएं है। समझने के लिए मान लीजिए पति पत्नी दोनो की रक्त में आरबीसी सामान्य है याने एए और एए है। इनके होने वाले 4 संतान में चारो सामान्य होंगे। इनको सिक्लिंग नही है। दूसरी अवस्था में मान लीजिए पति पत्नी में से कोई एक एएस याने वाहक (कैरियर) होंगे। उस अवस्था में इनके होने वाले 4 संतानों में 2 सामान्य होंगे और दो संतान कैरियर होंगे। तीसरी अवस्था में मान लीजिए पति पत्नी दोनो वाहक (कैरियर) होंगे। उस अवस्था में 4 संतान में, एक संतान नार्मल होंगे, 2 संतान कैरियर होंगे और एक संतान एसएस याने डिजीज होंगे। चौथी अवस्था होती है। मान ले पति पत्नी में एक एएस याने वाहक (कैरियर) है जबकि दूसरा एसएस याने डिजीज है। उस स्थिति में 4 संतान में से 2 कैरियर और 2 डिजीज होंगे। पांचवी अवस्था होती है जब पति पत्नी दोनो एसएस याने डिजीज होंगे। उस स्थिति में उनके होने वाले 4 संतान में चारो डिजीज याने एसएस होंगे। इसे ठीक करने हो तो शादियां कैरियर या डिजीज से करने के बजाय नार्मल से करने पर इसके संतान सिकल सेल से बचेंगे।
एसएस के मरीजों को समय समय पर आरएफटी, एलएफटी, सीबीसी की जांच कराते रहना चाहिए। जब हीमोग्लोबिन अत्यधिक कम हो जाती है तब ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। सिकल सेल की मरीजों को दी जाने वाले दवाइयां, सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्था उपलब्ध है। सिकलसेल एनीमिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत जन्म से 40 वर्ष के सभी नागरिकों को खून की जांच कर सिकलिंग की पता लगाने की जरूरत है। इसकी पूरी तैयारी शासन स्तर पर है। सभी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर,सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ,सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के साथ साथ हाट बाजार क्लिनिक और मुख्यमंत्री मेडिकल यूनिट वाले बस (एमएमयू) में भी जांच की व्यवस्था की जा चुकी है। इसके लिए शासन स्तर से बकायदा सभी लक्ष्य दिया गया है। जांच करने के लिए जिसमें उप स्वास्थ्य केंद्र (एसएचसी) को 5 टेस्ट प्रति कार्य दिवस, सभी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एचडब्ल्यूसी) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) को 10 टेस्ट प्रति कार्य दिवस, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) को 30 टेस्ट प्रति कार्य दिवस। इसी तरह से जिला अस्पताल को 60 टेस्ट प्रति कार्य दिवस किया जाना है। हाट बाजार टीम को 5 टेस्ट प्रति बाजार, साथ में एमएमयू को भी 25 टेस्ट सिकलसेल की जांच प्रति कार्य दिवस किया जाना है। हमारे जिले की इस वित्तीय वर्ष के लिए 1, 04,768 जांच किए जाने का लक्ष्य मिला हुआ है। अब तक 60,288 की जांच हो चुकी है। जन्म से 40 वर्ष के सभी नागरिकों की जांच जिले के सभी स्वास्थ्य संस्थाओं में जांच की जाएगी। इन जगहों पर पहले सोलुबिलिटी टेस्ट होगी। बाद में इसकी कंफरमेटी टेस्ट होगी, जिसे इलेक्ट्रोफोरेसिस कहते है, की जावेगी। आज कल एक नई विधि है जिसे पीओसी कहते है। इससे भी कन्फर्म करते है। टेस्ट करते समय सभी का फोटो भी लेना है। स्पेशली पॉजिटिव आने पर मरीज का फोटो लेना अनिवार्य है। यही नही बल्कि सभी टेस्ट की ऐप में इंट्री भी करना है। पॉजिटिव मरीजों को कार्ड भी बना कर देना है। इस कारण उसकी फोटो के अलावा अन्य जानकारी भी तुरंत एकत्रित किया जाना है। सभी बीएमओ को निर्देश है कि इसकी नियमित समीक्षा करे। डेली जांच की, डेली इंट्री की,पॉजिटिव मरीजों की फोटो सहित जानकारी,दवाई मिली की नही,अगर बल्ड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता हो तो इसकी व्यवस्था हो इसके लिए भी बीच बीच में सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में ब्लड डोनेशन कैंप भी लगाया जाए।