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सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को 17वें दिन सुरक्षित निकाला गया, देखें अस्पताल का अभी का वीडियो

उत्तरकाशी:  सिल्क्यारा सुरंग से सफलतापूर्वक बचाए गए 41 श्रमिकों की चिकित्सा जांच चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में की जा रही है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बाहर सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं।

उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग से बचाए गए एक श्रमिक राम मिलन के बेटे संदीप कुमार ने बताया, “बहुत अच्छा लग रहा है। सब लोग खुश हैं। उनसे बात हुई है। मैं केंद्र सरकार और बचाव कर्मियों का धन्यवाद करता हूं।”

41 श्रमिकों को सफलतापूर्वक बचाने के बाद सिल्क्यारा सुरंग के मुख्य द्वार पर बने मंदिर में पुजारी ने पूजा की।

हम सबने कुछ नहीं खाया-पीया…
टनल में फंसने के शुरुआती पांच दिन तक हम सबने कुछ नहीं खाया-पीया। शरीर कांप रहा था और मुंह से ठीक से आवाज तक नहीं निकल रही थी। बाहर से संपर्क पूरी तरह टूट चुका था। सबकी आंखों के सामने मौत का मंजर दिखाई दे रहा था। बचना मुश्किल लग रहा था। इसी तरह से दो दिन और दहशत में ही बीत गए। सातवें दिन बाहर से कुछ ताजी हवा आई तो हौसला बढ़ा। इसके बाद पल-पल जूझते हुए समय बीत रहा था। जीने की उम्मीद तब दिखायी थी, जब बाहरी दुनिया से मोबाइल के माध्यम से संपर्क हुआ। सभी को लगने लगा कि बाहर से उन्हें बचाने के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं। 16 दिन बाद उत्तरकाशी में फंसे रहने के बाद बाहर निकले बिहार के दीपक ने जब आपबीती सुनाई तो रुहें कांप उठी।


मंगलवार को दीपक को टनल से निकलने के बाद एम्बुलेंस से अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे चिकित्सकों की निगरानी में रखा गया है। इसी बीच वहां मौजूद मामा निर्भय ने दीपक से बात कराई। दीपक ने कहा कि ऐसा लगा कि पुनर्जन्म इसी को कहते हैं। बताया कि 16 दिन तक टनल में कब दिन हुई और कब रात, यह समझ में नहीं आ रहा था। हर पल सिर्फ मां-बाप, भाई और गांव की याद आ रही थी। परिवार के बारे में सोचने पर घबराहट होती थी।

दीपक ने बताया कि टनल में फंसे 41 मजदूरों में करीब आधा दर्जन को ही आपदा से निपटने की ट्रेनिंग मिली थी। उन्हें ही सबने मार्गदर्शक बना लिया। निकलने की बारी आई तो कहा गया कि जो मेट हैं वे बाद में निकलेंगे। लोगों का निकलना शुरू हुआ तो कलेजा बेतहाशा धड़कने लगा। एक-एक मजदूर बाहर जा रहे थे। इधर बचे दीपक में निकलने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसका नम्बर 19वें पर था। जब उसकी बारी आई और टनल से बाहर निकला तो बाहर जिंदगी मुस्कुराती खड़ी थी।

17 दिनों में सुरंग के अंदर श्रमिकों का जीवन एक-एक पल आशा और निराशा के बीच झूलता रहा। ऐसे मौके पर सबसे उम्रदराज गबर सिंह नेगी साथी मजदूरों के लिए सबसे बड़ा मानसिक सहारा बनकर उभरे। बचाव अभियान के दौरान सीएम से लेकर अधिकारियों ने तक ने गबर सिंह के जरिए ही श्रमिकों से सम्पर्क बनाए रखा। अधिकारियों ने गबर सिंह की नेचुरल लीडरशिप की भी जमकर तारीफ की। गबर साइट पर बतौर फोरमैन काम कर रहे थे, जो हादसे से कुछ देर पहले ही सुरंग के अंदर गए थे। ऐसे कठिन हालात में गबर सिंह ने घबराने के बजाय अन्य फंसे श्रमिकों को एकत्रित कर हादसे की जानकारी दी।


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