खतरे में पहाड़ी शहर

आदित्य नारायण चोपड़ा: जोशीमठ की त्रासदी सामने आने के बाद पहाड़ी राज्यों से जिस तरह की खबरें आ रही हैं उससे राज्य सरकारों और लोगों के ​लिए चिंताएं बढ़ गई हैं। सभी खबरें बड़ी तबाही की ओर इशारा कर रही हैं। उत्तराखंड के जोशीमठ के बाद जम्मू-कश्मीर के डोडा में जमीन धंसने की घटना ने परेशान करके रख दिया है। डोडा में 25 मकानों में दरार पड़ने से लोगों को सुर​​िक्षत स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। भू-वैज्ञानिकों की टीमें मुआयना करने में जुटी हुई हैं। पूरे इलाके में दहशत का माहौल है। डोडा के थॉथरी गांव में करीब 100 मकानों की जमीन खिसकने की बात कही जा रही है। इससे पहले हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मैक्लोडगंज में जमीन धंसने की खबरें आ चुकी हैं। धर्मशाला से मैक्लोडगंज जाने वाली सात किलोमीटर लंबी सड़क कई जगह धंस चुकी है। धर्मशाला के कई इलाकों को भूस्खलन के लिहाज से आपदाग्रस्त माना जाता है। मंडी में 110 जगह और चंबा में 113 जगह खतरे से भरी मानी गई हैं। हाल ही में केंद्र शासित लद्दाख को बचाने के ​लिए शिक्षाविद सोनम वांगचुक ने शून्य से भी कम तापमान में अनशन कर सभी का ध्यान आकर्षित किया था। सोनम वांगचुक 2009 में आमिर खान की फिल्म थ्री इडियट्स से च​र्चित हुए थे। इस फिल्म में आमिर खान ने लद्दाख के ​शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक से प्रेरित भूमिका निभाई थी। देश के चुनिंदा पर्यटक स्थलों में लद्दाख का एक अलग ही स्थान है।प्रदूषण वायु, जल और धरती की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं का एक ऐसा अवांछनीय परिवर्तन है जो जीवन को हानि पहुचा सकता है। दुनियाभर में हाे रहे तथाकथित विकास की प्रक्रिया ने प्रकृति एवं पर्यावरण के सामंजस्य को झकझोर दिया है। इस असंतुलन के चलते लद्दाख जैसे सुंदर क्षेत्र भी प्रदूषण की समस्या से प्रभावित हुए हैं। कुछ वर्ष पूर्व या कोई 25 वर्ष पहले हर मौसम का आगमन सामयिक होता ​था, मगर अब ऐसा नहीं है और इसमें कुछ अनि​श्चितता आ गई है। लद्दाख में भीषण गर्मी के कारण हिमनद तेज गति से और कम समय में पिघल रहे हैं। इस कारण फसल के समय पानी यकायक गायब हो जाता है। पहाड़ों पर बर्फ लंबे समय तक नहीं रह पाती है, जिससे वहां घास नहीं उग पा रही है। घास न उगने के कारण वहां रहने वाले अनेक वन्य जीव इंसानी आबादी के निकट आ जाते हैं, जैसा कि विगत कई वर्षों से देखा जा रहा है। लद्दाख में पानी की समस्या हमेशा से रही है। बढ़ते पर्यटन के कारण गेस्ट हाउस और होटलों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, इससे पानी का बेतहाशा उपयोग हो रहा है। स्थानीय नागरिक पानी बचाने के लिए सूखे शौचालयों का प्रयोग करते थे, जो अब कम होता जा रहा है। घरों एवं होटलों आदि का कूड़ा-करकट खुले स्थानों पर फैंका जा रहा है, जिससे पर्यावरण और भी दूषित हो रहा है। सोनम वांगचुक का आरोप है कि प्रशासन लद्दाख के पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहा बल्कि उसके लिए कार्पोरेट को खुश करने की बजाय ग्लेशियर समेत हिमालय की रक्षा अधिक महत्वपूर्ण होनी चाहिए। 

क्रेडिट : punjabkesari.com


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