बेटियां विश्व चैंपियन

 By: divyahimachal 
भारत की बेटियां क्रिकेट की विश्व चैम्पियन क्या बनीं कि मानसिक, सामाजिक और लैंगिक आधार पर मंथन का अंधड़ शुरू हो गया। भारत में औसत किशोरी बेटियों को बंदिशों में जीना पड़ता है। घर से स्कूल और वापस घर की चारदीवारी….यही बेटियों की दुनिया रही है। वह खेल के तौर पर रस्सी कूद सकती है या स्टापू खेलकर अपना मनोरंजन कर सकती है। कुछ और घरेलू किस्म के खेल भी हैं। बेशक आज बेटियां कुश्ती लड़ रही हैं, मुक्केबाजी की विश्व चैम्पियन हैं, हॉकी को लगातार जि़ंदा रखा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट की खिताबी जंग भी लड़ी हैं, लेकिन यह सब कुछ प्रतीकात्मक है। मु_ी भर बेटियों तक ही यह संभव है। यकीनन आज बेटियां ‘बंदिनी’ नहीं हैं, लेकिन आज भी यह जमात ‘अपवाद’ ही है। गांवों में तो सामाजिक और लैंगिक विभेद बेहद क्रूर हैं। ऐसे में भारत की अंडर-19 बेटियों ने, साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक रहे इंग्लैंड की खिलाडिऩों को 7 विकेट से पराजित कर, एक महान इतिहास तो रचा है, कई मिथक भी तोड़े हैं और अभूतपूर्व, अप्रत्याशित, अकल्पनीय और असंभव-सी उपलब्धि भी हासिल की है। बेटियां विश्व चैम्पियन बनी हैं। वाह! शाबाश!! विस्फोटक बल्लेबाज शेफाली वर्मा के नेतृत्व में हमारी छोरियों ने वह क्षितिज छुआ है, जो उनसे अदृश्य-सी दूरी पर था।
श्वेता, मन्नत, पार्शवी, साधु, अर्चना, सौम्या, तृषा आदि किशोरियों को सिर्फ क्रिकेट खेलने और उसका प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ी होगी, यह एक ऐतिहासिक अध्याय का विषय है। श्वेता ने चैम्पियनशिप में सबसे ज्यादा 297 रन बनाए, पार्शवी 11 विकेट लेकर टूर्नामेंट में दूसरे स्थान पर रहीं और एक टीम के तौर पर चैम्पियन बनीं, ये तमाम आज ब्रह्म-सत्य हैं। इन बेटियों के मानस में किस तरह और कब क्रिकेट का खेल उभरा होगा और कुदरत ने उनके भीतर वह हुनर और प्रतिभा बुनी होगी, इस पर भी एक बड़ी किताब लिखी जा सकती है। कप्तान शेफाली ने विश्व चैम्पियन बनने से एक दिन पहले ही अपना 19वां जन्मदिन मनाया था। वह अब दुनिया की ऐसी पहली क्रिकेटर हैं, जिसने अंडर-19 विश्व कप जीता और टी-20 विश्व कप और राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल भी खेले। शेफाली महिला की सीनियर टीम में तभी से खेल रही हैं, जब उनकी किशोरावस्था शुरू हुई थी। अब इन उपलब्धियों पर भारत के सर्वप्रथम विश्व विजेता कप्तान कपिलदेव इतना गदगद हैं कि शब्द ही भूल गए हैं और भावुक हो रहे हैं। कपिल क्रिकेट की बेटियों की एक ऐसी जमात को प्रशिक्षण दे रहे हैं, जो आने वाले वक़्त में स्टार, विश्व विजेता बन सकती है।
हालांकि भारत में डायना, अंजुम चोपड़ा से लेकर मिताली राज, झूलन गोस्वामी, हरमनप्रीत, स्मृति, ऋचा, राधा यादव, पूनम, जेमिमा आदि तक क्रिकेटर बेटियों का भरा-पूरा संसार रहा है, लेकिन खेल और ख्याति के आसमान उन्होंने अपने बलबूते ही छुए हैं। मिताली और झूलन के नाम क्रमश: बल्लेबाजी और गेंदबाजी के विश्व कीर्तिमान स्थापित हैं, लेकिन महिला क्रिकेट को लंबे दौर तक बीसीसीआई की मान्यता तक नहीं थी, यह विडंबना ही है। बहरहाल बीते दिनों बीसीसीआई ने महिला-पुरुष क्रिकेटरों के पारिश्रमिक को बहुत कुछ समान किया है, लेकिन सालाना अनुबंध की राशि में अब भी गहरी असमानताएं और विसंगतियां हैं। अब बेटियों के क्रिकेट विश्व चैम्पियन बनने पर बीसीसीआई ने 5 करोड़ रुपए इनाम की घोषणा की है, तो यह अच्छा, प्रशंसनीय कदम कहा जा सकता है, लेकिन एक ही खेल में, लैंगिक आधार पर, असमानता स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। दोनों पक्षों के खिलाड़ी भारत के लिए खेलते हैं। भारत ही गर्वीला और गौरवान्वित महसूस करता है। अब बेटियों के विश्व चैम्पियन बनने के बाद क्रिकेट की भावी पीढ़ी के सपनों को नए पंख लगेंगे, महत्त्वाकांक्षाएं और विजेता बनने के भाव भी सशक्त होंगे और अंतत: फायदा भारतीय क्रिकेट का ही होगा। अंडर-19 क्रिकेट टीम को इस जीत पर बधाई है।


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