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अरावली में छह सौ हेक्टेयर भूमि पर चार महीने के अंदर सर्वे पूरा होगा

अरावली के इन गांवों के आसपास होगा सर्वे

हिसार: हरियाणा पुरातत्व एवं संग्राहलय विभाग अरावली के करीब छह सौ हेक्टेयर भूमि पर पुरातत्व के मद्देनजर सर्वे का काम अगले चार महीने में पूरा करेगा. इसके लिए विभाग टीमों के गठन की तैयारी में है. हरियाणा सरकार की खनन संबंधी एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान पुरातत्व विभाग को सर्वे का कार्य जल्द पूरा करने के दिशा-निर्देश दिए थे. विभाग अब इसे अगले चार महीने में पूरा करने की तैयारी में है.
पुरातत्व एवं संग्राहलय विभाग अरावली में धौज, मांग, सिलावटी आदि इलाकों में सर्वे को प्राथमिकता पर पूरा करेगा. हालांकि, विभाग की एक अधिसूचना के मुताबिक करीब पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र का संरक्षण करने की योजना है. ताकि इस संरक्षित क्षेत्र में पुरातत्व संबंधी शोध कार्य को बढ़ावा दिया जा सके. अधिकारियों का दावा है कि इस क्षेत्र में पुरातत्व संबंधी चीजें हैं. इसलिए सर्वे आवश्यक है. पुरातत्व शास्त्रत्त् के छात्र भी यहां अरावली के मांगर क्षेत्र में पाषाण काल के शैलचित्र मिलने की रिपोर्ट विभाग को सौंप चुके हैं. वर्ष 2019 से अरावली के फरीदाबाद के मांगर और आसपास के गांवों के इलाकों में शोध कार्य भी किया गया था. इस दौरान मानव जाति के कुछ ऐसे चिह्न मिले हैं, जो पाषाण युग के हो सकते हैं. मांगर और कोट गांव के निकट अरावली में पत्थर के घर व गुफाएं होने का भी दावा किया गया था.

दिल्ली एनसीआर के लिए जीवन रेखा है अरावली: पर्यावरणविद् सुनील हरसाना कहना है कि अरावली पर्वत शृंखलाएं दिल्ली-एनसीआर के लोगों के लिए जीवन रेखा है. इसलिए इसका संरक्षण बेहद आवश्यक है. बढ़ते वाहन के बोझ से दिल्ली एनसीआर प्रदूषण से ग्रस्त हो चुका है. साल-दर साल वायु की गुणवत्ता बेहद खराब हो रही है. अरावली यहां फेफडो के रूप में काम करती है. पश्चिम से आने वाली गर्म हवा को अरावली ठंडा कर देती है.

अरावली के इन गांवों के आसपास होगा सर्वे

हरियाणा पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय गांव मांगर, फतेहपुर, अनंगपुर, कोट, धौज, मोहबताबाद आदि गांवों के आसपास के क्षेत्र में पहले सर्वे करेगा. फिर संरक्षित करने का प्रस्ताव तैयार किया जाएगा. हरियाणा पुरातत्व व संग्रहालय निदेशालय के उपनिदेशक बनानी भट्टाचार्य का कहना है कि अरावली में 10 से 50 हजार साल पुरानी कुछ चीजें मिलने की संभावना है. इसके लिए पहले सर्वे की जरूरत है.
अरावली में बसे अनंगपुर गांव के आसपास के इलाके में भारतीय पुरातत्व से जुड़े कुछ शोधार्थियों ने वर्ष 1991 से 1993 तक शोध कार्य किया. इसमें पुरातन पाषाण काल के कुछ औजार, उपकरण और कुछ शैलचित्र मिले थे. इस दौरान राज्य सरकार ने इसे वन आरक्षित क्षेत्र घोषित करके प्रतिबंध लगा दिया. कुछ शोधार्थियों ने बाद में प्रयास किया तब वर्ष 2002 में गैरवानिकी कार्य या खनन पर प्रतिबंध लग गया था.

 


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