उत्तराखंड

मास्टर प्लान के विरुद्ध विकास से जुड़ी याचिका पर हुई सुनवाई

कोर्ट ने कहा कि क्या सरकार ने विकास के नाम का चश्मा पहन रखा है?

देहरादून: हाईकोर्ट ने दूनघाटी को इको सेंसटिव जोन घोषित करने के साथ मास्टर प्लान के मुताबिक विकास योजनाएं नहीं बनाने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान गंभीर टिप्पणी की. कोर्ट ने मौखिक तौर पर सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि अगर राजधानी देहरादून में स्वीकृत नक्शे के अनुसार फ्लाईओवर का निर्माण किया गया होता तो 40 लोगों को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ती.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि क्या सरकार ने विकास के नाम का चश्मा पहन रखा है?

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने इस प्रकरण को सुना. इस मामले से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई थी कि फ्लाईओवर के गलत नक्शे के कारण अभी तक 40 लोग जान गंवा चुके हैं. हाईकोर्ट ने सचिव-शहरी विकास को निर्देश दिए कि बल्लीवाला और आईएसबीटी फ्लाईओवर का निर्माण किस स्वीकृत मैप के अनुसार किया गया, इस बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई जाए. उत्तराखंड के स्थायी अधिवक्ता से इस मामले को प्राथमिकता से देखने को भी कहा गया. अगली सुनवाई के लिए पांच जनवरी की तिथि निर्धारित की गई.

 

चौंतीस साल बीतने के बाद भी जीओ प्रभावी क्यों नहीं?

दरअसल, दून निवासी आकाश वशिष्ठ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. कहा गया है कि वर्ष 1989 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने दूनघाटी को इको सेंसटिव जोन घोषित किया था. 34 साल बीतने के बाद भी इस जीओ को प्रभावी तौर पर लागू नहीं किया गया. इस कारण दूनघाटी में नियमविरुद्ध ढंग से विकास कार्य, खनन, पर्यटन समेत तमाम गतिविधियां गतिमान हैं. विकास कार्यों के लिए मास्टर प्लान नहीं है. न ही पर्यटन के लिए पर्यटन विकास योजना बनाई गई. कहा गया कि दूनघाटी में समस्त विकास कार्य मास्टर प्लान के अनरूप हों.

 


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