पूंछ की पूछ

 
सोचता हूं अगर शुक्राणू की तरह आदमी की पूँछ पैदा होने के बाद भी बनी रहती तो शायद रिश्ता करते वक्त लडक़ा-लडक़ी की जन्म-पत्रियों के मिलान के बाद पूँछों का मिलान भी किया जाता। डेट करते लडक़ा-लडक़ी एक-दूसरे की पूँछों पर ख़ास ध्यान देते। अभी केवल जानवरों की पूँछ पर कहावतें हैं। आदमी की पूँछ पर महाकाव्य रचे जा सकते थे। यह भी संभव है कि भगवान ने लंका दहन के बाद आदमी की पूँछ ग़ायब कर दी हो। नहीं तो जब भी आदमी को मौक़ा मिलता, पड़ोसी की लंका ख़ाक कर देता। क्योंकि भले वह बंदर से आदमी बन गया हो, उसने डालियों पर कूदना अब भी नहीं छोड़ा। यह बात दीगऱ है कि वैज्ञानिक मानते हैं कि बंदर से आदमी बनने की प्रक्रिया में उसने पूँछ से निज़ात पा ली। पर उसे आज भी जब मौक़ा मिलता है, वह गुलाटी मार लेता है। अगर भगवान ने आदमी की शक्ल की तरह पूँछें भी अलग-अलग बनाई होतीं तो हैसियत के हिसाब से उनका रखरखाव भी अलग-अलग होता। एक मंत्री और किसान की पूँछ उनकी हैसियत के अनुसार अलग-अलग होती। यह भी संभव था कि चुनावों को ध्यान में रखते हुए सरकार पूँछों के रखरखाव के लिए किसी भत्ते का ऐलान करती या सरकार और विपक्ष चुनावी घोषणापत्र में कोई ऐलान करते। सरकारी नौकरों के लिए सरकार विशेष भत्ते का ऐलान करती जो वरिष्ठता के आधार पर तय होता। ऑफिस मैनुअल में पद के आधार पर पूँछों के व्यवहार नियम होते।
ख़ासकर सुरक्षा सेवाओं, आईएएस और अन्य ऐसी तमाम सेवाओं में, जिनमें आदमी लघुशंका के लिए भी सीनियोरिटी के हिसाब से वाशरूम जाता है, पूँछों के व्यवहार पर विशेष नियम बनाए जाते। सीनियर के सामने जूनियर को किस तरह पूँछ टाँगों के बीच दबा कर रखनी है। चूँकि आदमी के हाथ हैं, इसीलिए उसे मक्खी उड़ाने के लिए पूँछ को फटकने या लहराने की ज़रूरत नहीं। ऐसे में किसी सीनियर के सामने पूँछ को फटकना या लहराना, उसकी शान में गुस्ताख़ी माना जाता। अनुशासन तोडऩे पर उस पर केन्द्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमावली के तहत दण्डित करने के प्रावधान होते। कुतत्व पूँछ आचरण के वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार ही आदमी की पूँछ के वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर इस नियमावली की रचना की जाती। इस तरह पूँछ की पूछ भी पदानुसार तय की जाती। कुत्तों के वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार पूँछ खड़ी करने का मतलब किसी के सामने या समूह पर अपना प्रभुत्व दर्शाना माना जाता है। लेकिन जब दो कैबिनेट मंत्री या एक ही रैंक के दो व्यक्ति आमने-सामने होते तो उन दोनों की पूँछ टाँगों के बीच थोड़ी-सी बाहर की ओर लटकती रहती। दोनों एक-दूसरे को दर्शाते कि ‘मुझे आपसे कुछ लेना-देना नहीं। मात्र मर्यादा का पालन हो रहा है।’ जब कोई अधिकारी अपने जूनियर को लताड़ता तो जूनियर की पूँछ दोनों टाँगों के बीच अंदर की ओर मुड़ी जाती, जिसका अर्थ होता कि उसने अपनी हार स्वीकार ली है।
आम आचरण में जूनियर अपनी पूँछ को दबा कर रखते, जो दर्शाता कि वह अपने सीनियर की सत्ता को स्वीकारता है। अगर किसी सीनियर की पूँछ ज़मीन के समानांतर खड़ी होती तो उसका अर्थ होता कि वह अपने जूनियर को डरा रहा है। जब किसी की पूँछ ऊपर की ओर सीधी खड़ी होती तो उसका मतलब होता वह अपने कार्यालय का मुखिया है। पर ऐसा नहीं कि पूँछ आचरण केवल श्वान ही करते हैं। उनके अलावा भेडिय़ों, लोमड़ी और लकड़बग्घों में इसी तरह पूँछ का आचरण पाया गया है। आप अगली बार जब किसी सरकारी कार्यालय में उपस्थित हों तो कर्मियों के आचरण के आधार पर इस कहावत पर विशेष ध्यान दें कि ‘अपनी गली में कुत्ता भी शेर’ कैसे होता है। कल्पना लोक में उनकी पूँछ के बेरोमीटर को नोट करते हुए देखें कि क्या होता है। फुर्सत में सोचें कि भगवान ने भले मनुष्य को कुत्ते की तरह पूँछ की नेमत नहीं बख्शी, पर कहीं वह अपने सीनियर, विशेषकर बॉस के सामने पूँछ हिलाने का आचरण कुत्तों से प्रेरणा लेकर तो नहीं कर रहा।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal


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