गीता अनुसार ये 4 इच्छाएं कर सकती है बर्बाद

गीता ज्ञान: मनुष्य की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं। लेकिन जब कोई व्यक्ति दूसरों के श्रम में भाग लेने की सोचने लगता है तो उसका विनाश निकट आ जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भागवत गीता में भी इसका उल्लेख किया है। भगवान कृष्ण ने कहा है कि ये विचार और इच्छाएं ही हैं जो किसी व्यक्ति को नष्ट कर सकती हैं।

हिंदू धर्म में श्रीमद्भगवत गीता का विशेष महत्व है। भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति इन चार चीजों की इच्छा रखता है तो उसका जीवन कष्टों से भर जाएगा।

गीता का श्लोक

परांग पर द्रव्यंग तथैव च प्रतिग्रहं
परस्त्रिंग पर्निन्नदंग च मनसा ओपी बिवर्जयत

श्लोक का अर्थ

कभी भी दूसरे का भोजन, दूसरे का धन, दूसरे का दान न लें, किसी स्त्री की इच्छा या निंदा न करें।

-किसी को भी किसी दूसरे व्यक्ति का भोजन अपना नहीं मानना ​​चाहिए। अपने परिश्रम से खरीदा हुआ भोजन ही करना चाहिए।

– यदि कोई व्यक्ति धोखे से किसी दूसरे व्यक्ति का धन हड़पने की कोशिश करता है या उसकी संपत्ति पर नजर रखता है तो उसके पास जो कुछ है उसे भी खो सकता है।

– कभी भी किसी के उपहार या दान को अपना मानकर लालच नहीं करना चाहिए।

– स्त्री के प्रति वासना करना महापाप है, व्यक्ति को अपने मन की भावनाओं को वश में रखना चाहिए। ऐसा करने वाले व्यक्ति की छवि भी खराब होती है।

– श्रीमद्भागवत गीता में भगवान ने कहा है कि कभी भी किसी व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति अपना ही नुकसान करता है। आलोचना किसी के लिए भी अच्छी नहीं होती, इससे केवल दुख ही होता है।

 


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