दो दशक में आधा दर्जन मामलों ने सियासत को उलझाया, जानिए कब-कब देश में बनीं सुर्खियां

झारखण्ड | झारखंड में संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत दल-बदल के कम से कम तीन दर्जन मामले स्पीकर के न्यायाधिकरण में आए. कई मामले दिलचस्प रहे तो कई ने कानूनी से ज्यादा सियासी पेचदगियां पैदा कीं. कुछ मामले इतने सपाट थे कि उनके फैसलों पर किसी पक्ष ने अंगुली नहीं उठाई. लेकिन कुछ मामले सियासत में उलझ कर रह गये. न्यायाधिकरण के फैसले पर देशभर की नजरें बनी रहीं. कई मामलों ने संवैधानिक मसलों को भी उलझाया. स्पीकर पर सियासी दबाव बना रहा. वर्तमान में एनसीपी के विधायक कमलेश कुमार सिंह के खिलाफ दल-बदल का मामला चल रहा है. 2009 में भी उन्हें दल-बदल में अयोग्य करार दिया गया था.

दूसरी विधानसभा में चार विधायकों के खिलाफ दल-बदल का पहला मामला तत्कालीन स्पीकर मृगेंद्र प्रताप सिंह के कार्यकाल में दर्ज हुआ था. स्पीकर ने खुद संज्ञान लेकर जदयू के चार विधायकों पर मामला चलाया. महीने भर की सुनवाई के बाद रामचंद्र केसरी, लालचंद महतो, मधु सिंह की सदस्यता खत्म हो गई. बच्चा सिंह ने फैसला आने के पहले इस्तीफा दे दिया. जदयू छोड़ चारों ने लालू प्रसाद के सामने रांची में राजद की सदस्यता ले ली थी.

2020 से दल-बदल के छह मामलों पर सुनवाई जारी

झाविमो छोड़ भाजपा में शामिल होनेवाले बाबूलाल मरांडी, कांग्रेस में शामिल होनेवाले प्रदीप यादव और बंधु तिर्की पर सुनवाई जारी है. इसी बीच कांग्रेस के तीन विधायकों राजेश कच्छप, इरफान अंसारी और विक्सल कोनगाड़ी के खिलाफ कांग्रेस विधायक दल नेता ने ही दल-बदल की शिकायत की. इनके खिलाफ भी मामला चल रहा है.
20 में झाविमो के छह विधायकों पर लंबा चला मामला
झाविमो के छह विधायकों- अमर कुमार बाउरी, रणधीर सिंह, आलोक चौरसिया, नवीन कुमार जायसवाल, जानकी प्रसाद यादव और गणेश गंझु पर लगभग पांच साल तक दल-बदल का मामला चला. विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के पहले शिकायतकर्ता बाबूलाल मरांडी और प्रदीप यादव के आवेदन खारिज हो गए.


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