झारखंड में 33% से अधिक जंगल अभी भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित

झारखण्ड | रांची किसी क्षेत्र विशेष में 33 प्रतिशत वनाच्छादन से जलवायु परिवर्तन का असर कम होता है। लेकिन, झारखंड का 33 फीसदी से अधिक भू-भाग हरा-भरा होने के बाद भी यहां जलवायु परिवर्तन का असर दिखने लगा है। उत्तरी-पश्चिमी जिलों गढ़वा, लातेहार व पलामू में औसत तापमान का बढ़ना, बारिश घटना, जंगलों में आग को इसके परिणाम के तौर पर देखा जा रहा है। प्रदेश सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए काम करना शुरू कर दिया है।
ये बातें प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) संजय श्रीवास्तव ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के संयुक्त तत्वावधान में हुए अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन में कही। जलवायु उत्तरदायी कार्यों, नीतियों व विधानों पर झारखंड में हो रहे कार्यों पर विचार साझा करने के लिए देश में भारतीय वन सेवा के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में पीसीसीएफ संजय श्रीवास्तव को आमंत्रित किया गया था।
उन्होंने सम्मेलन में कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों-ग्रीन हाउस प्रभाव, कृषि जीवाश्म ईंधन का प्रयोग, जंगलों की कटाई, कारखाने और अन्य प्रकार के प्रदूषण को मद्देनजर रखते हुए झारखंड में हरित हाइड्रोजन, जैव इंधन व नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में सराहनीय पहल की गई है।
हरित हाइड्रोजन की दिशा में पहल करते हुए झारखंड के उद्योग विभाग ने टाटा समूह की कंपनी के साथ जमशेदपुर में हाइड्रोजन इंजन निर्माण की यूनिट स्थापित करने के लिए एमओयू किया है। नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में योगदान के लिए नई सौर ऊर्जा नीति लागू की गई है। सम्मेलन को संबोधित करते पीसीसीएफ संजय श्रीवास्तव।
