
शिमला। हिमाचल के लोगों को राज्य सरकार और केंद्र सरकार की हैल्थ कवरेज स्कीमों में मिल रहा कैशलेस इलाज अब राज्य के कोषागार पर भारी पडऩे लगा है। एक तरफ कवरेज अचानक बढ़ गई और दूसरी तरफ कार्ड की वेलिडिटी तीन साल होने से प्रीमियम से आने वाली धनराशि भी चली गई। अब हाल यह है कि हिमकेयर और आयुष्मान भारत स्कीमों के जरिए कैशलेस इलाज के 326 करोड़ बकाया हो गए हैं। इससे जहां आईजीएमसी और टांडा जैसे बड़े अस्पताल मुश्किल में हैं, वहीं निजी अस्पताल ये सेवाएं बंद करने की बात कह रहे हैं। हिमाचल में अब तक करीब 10 लाख मरीजों के कैशलेस इलाज पर 1122 करोड़ खर्च हो चुके हैं। भारत सरकार आयुष्मान स्कीम चला रही है, जिसमें 90 फ़ीसदी पैसा भी केंद्र सरकार का है। इस स्कीम में जो कवर नहीं होते, उनके लिए पूर्व जयराम सरकार के समय से हिम केयर स्कीम लागू हुई थी।

पूर्व सरकार चुनाव से पहले हिमकेयर कार्ड की वेलिडिटी को हर साल रिन्यू करने के बजाय तीन साल कर गई थी। इस कारण प्रीमियम से सालाना आने वाले करीब 60 करोड़ भी हाथ से निकल गए। दूसरी तरफ 80 फ़ीसदी से ज्यादा मरीज हैल्थ कवरेज में होने के कारण खर्चा अचानक बढ़ गया। अब तक सिर्फ हिमकेयर से सात लाख से ज्यादा मरीज 810 करोड़ का फ्री इलाज करवा चुके हैं। इसी तरह आयुष्मान में करीब अढ़ाई लाख लोग 306 करोड़ का कैशलेस इलाज करवा चुके हैं। अप्रैल के बाद से अब तक इसी वित्त वर्ष में हिमाचल सरकार ने हैल्थ कवरेज के लिए ही करीब 300 करोड़ की धनराशि जारी की है, लेकिन यह कम पड़ रही है। हिमाचल से बाहर पीजीआई चंडीगढ़ और सेक्टर 32 का अस्पताल हिमकेयर में इम्पैनल है। कुल 141 स्वास्थ्य संस्थानों में कैशलेस सुविधा है। दूसरी तरफ आयुष्मान में ऑल इंडिया कवरेज है। ऐसे में कार्ड की संख्या और कवरेज बढऩे से हर महीने करीब 37 करोड़ का खर्चा हिमकेयर में ही सरकार पर पड़ रहा है।