भारतराजस्थान

रामद्वारा में हरिनारायण रामेश्वरलाल डागा परिवार की ओर से आयोजित नानी बाई का मायरा कथा का हुआ समापन

भीलवाड़ा। वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में अन्तरराष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय के स्वामी रामचरणजी महाराज की तपोभूमि माणिक्यनगर रामद्वारा में रामस्नेही संत दिग्विजय राम के मुखारविंद से तीन दिवसीय नानी बाई का मायरा कथा के अंतिम दिन सोमवार को भक्ति की ऐसी धारा प्रवाहित हुई कि पूरा माहौल धर्ममय हो उठा। भक्तों का सैलाब इस कदर उमड़ा कि रामद्वारा परिसर के विशाल हॉल में भी बैठने के लिए जगह मिलना मुश्किल हो रहा था। रामद्वारा में हरिनारायण रामेश्वरलाल डागा परिवार की ओर से आयोजित तीन दिवसीय नानी बाई का मायरा कथा के अंतिम दिवस व्यास पीठ से कथावाचक रामस्नेही संत रमताराम महाराज के सुशिष्य संत दिग्विजय रामजी ने दोपहर एक से शाम 5 बजे तक नरसीजी मेहता के नानी बाई का मायरा भरने से जुड़े विभिन्न प्रसंगों का भक्तिभाव के साथ कई दृष्टान्त देते हुए वाचन किया तो भक्तगण भावविभोर हो उठे। कथा के दौरान भक्ति से ओतप्रोत माहौल में भक्तगण गीतों व भजनों पर जमकर नृत्य करते रहे। संत दिग्विजय राम ने परम भक्त नरसीजी मेहता के बुलावे पर नानी बाई का मायरा भरने के लिए ठाकुरजी भगवान के सेठजी का रूप धरकर भाई बन राधा-रूक्मणी संग पहुंचने के प्रसंग का वाचन किया तो भावनाओं का सागर हिलौरे मारने लगा और पांडाल सांवलिया सेठ के जयकारों से गूंज उठा। ठाकुरजी के नानी बाई का भाई बन 56 करोड़ का मायरा भरने के प्रसंग का सजीव मंचन किया गया तो पूरा पांडाल जयकारो से गूंजायमान हो उठा। इस दौरान सजीव झांकियों का प्रदर्शन कर बताया गया कि किस तरह भगवान सेठ का रूप बनाकर नरसीजी मेहता के पास पहुंचते है ओर वह जब मायरा भरने बढ़ते है तो साथ चल रहे सूरदास संतों को भी नेत्र ज्योति मिल जाती है। कुबेर का खजाना मायरे में भर देने से सभी नानी बाई से पूछने लगते है कि तेरा यह वीरा (भाई) कहां से आया है। संत दिग्विजय राम ने कहा कि नरसीजी मेहता के चरित्र से भगवान के प्रति मनुष्य का विश्वास बढ़ता है। व्यक्ति के प्रारब्ध व पुरूषार्थ के कारण ही सब काम होते है। ये चरित्र हमे यह शिक्षा देता है कि भगवान से कुछ मांगने की बजाय ये कहे कि मेरा काम आपको ही करना है मैं आपके ही भरोसे हूं। परमात्मा ने जिंदगी देकर भेजा है तो वह सब इंतजाम भी करेगा। नानी बाई का मायरा कथा यही शिक्षा देने के लिए है कि भगवान के प्रति अपनापन ओर अटूट आस्था रखो वह आपका कोई काम भी अधूरा नहीं रहने देंगा। हमारी भक्ति निस्वार्थ व सच्चे मन से हो तो अवश्य सुफल प्रदान करती है। भक्त के ह्दय में ही भगवान का वास होता है ओर उसके पुकारने पर वह अवश्य प्रकट होते है। संत दिग्विजय राम ने कहा कि अपनी परम्पराओं और संस्कृति की रक्षा अवश्य करे, तभी हमारा भविष्य सुखद होगा। जीवन में कितनी भी प्रगति कर ले पर अपने मूल संस्कार मत भूले। हर सनातनी भक्त का परिचय तिलक रहा है। प्रतिदिन सिर पर तिलक अवश्य लगाना चाहिए। सिर पर चोटी रखना भी धर्म की पहचान है। उन्होंने इस बात पर खेद जताया कि हम आधुनिकता के नाम पर अपनी परम्परा व संस्कारों से दूर होते जा रहे है। समापन दिवस पर व्यास पीठ से कथा का आगाज करते हुए कथावाचक संत दिग्विजय राम ने सबसे पहले ठाकुर गोवर्धननाथ प्रभु, श्रीद्वारकाधीश प्रभु, सांवलिया सेठ, चारभुजानाथ, श्रीनाथजी के साथ स्वामी रामचरणजी महाराज, पीठाधीश्वर आचार्य रामदयालजी महाराज के चरणों में भी प्रणाम किया। गुरूवर व कृष्ण भक्त नरसी मेहता के चरणों में प्रणाम करते हुए उन्होंने कथास्थल पर आए सभी संतों व भक्तों को भी दंडवत प्रणाम किया। कथास्थल पर अन्तरराष्ट्रीय रामस्नेही सम्प्रदाय के संत रमताराम महाराज, निर्मलरामजी महाराज आदि का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। भक्तिरस से ओतप्रोत संचालन पंडित अशोक व्यास ने किया। डागा परिवार के सदस्यों ने आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी का आभार जताया।
संत दिग्विजयराम से प्राप्त किया आशीर्वाद
कथा के शुरू में समाजसेवी अशोक पोखरना ने व्यास पीठ से आशीर्वाद प्राप्त किया। समापन पर आयोजक डागा परिवार की ओर से लादूलाल सुराणा, ओमप्रकाश नुवाल, श्यामसुंदर बियाणी, जगदीशप्रसाद बागला, सत्यनारायण चेचाणी, सुरेश अग्रवाल, संजय सोनी, बनवारीलाल सोमानी, महावीरप्रसाद सोनी, भगतराम सोमानी, महावीरप्रसाद कोगटा, महावीर लढ़ा, गोविन्द्रप्रसाद लढ़ा, कैलाश बिड़ला, डॉ. बीएम अजमेरा आदि का सम्मान किया गया। सम्मानित होने वाले अतिथियों ने व्यास पीठ पर विराजित संत दिग्विजयराम से भी आशीर्वाद प्राप्त किया।
भजनों पर थिरकते रहे भक्तगण
नानी बाई का मायरा कथा के अंतिम दिन पूज्य संत दिग्विजयरामजी ने भगवान की भक्ति से ओतप्रोत गीतों व भजनों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दी। भजनों का ऐसा जादू छाया कि भजन शुरू होते ही भक्तगण अपनी जगह से उठ खड़े होकर थिरकने लगे। सांवरियों है सेठ म्हारी राधाजी सेठानी है, भर दो मायरो सांवरिया, पधारो म्हारे नटवर नागरिया, नानी बाई का मायरा की ठाकुरजी ने राखी लाज जैसे भजनों पर सैकड़ो भक्त थिरक उठे। इस दौरान भक्तिभावना इतनी प्रबल थी कि व्यास पीठ से भजन की धुन शुरू होते ही भक्तों के कदम नृत्य के लिए उठ जाते। भजनों की रसधारा प्रवाहित करने में सहयोगी की भूमिका सीताराम, प्रदीप, पवन, अर्जुन, महेश आदि ने निभाई।


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